पार्ट - 4
संरपच, अवधेश ठाकुर की हवेली के सामने एक ज़ीप आकर खड़ी हुई!! और उसी ज़ीप में से कीसी हॉर्न बज़ायी..
रामू दौड़ते हुए गेट तक पहुचां और गेट को खोलते हुए देखा की, ये ज़ीप तो पुलीस की थी|
रामू इससे पहले की कुछ बोल पाता, पुलीस की ज़ीप आगे बढ़ी और हवेली में प्रवेश कर गयी...
"पुलीस के ज़ीप के पीछे ही, दीनेश की ज़ीप भी हवेली में प्रवेश की...|
दीनेश ने ज़ीप को एक तरफ़ खड़ी करते हुए उस पर से नीचे उतरा और रामू से पूछा-
दीनेश- क्या बात है रामू...ये पुलीस की गाड़ी यहां क्यूं आयी है??
दीनेश की बात सुनकर, रामू ने कहा-
रामू- पता नही..छोटे मालीक!!
दीनेश...ने अपने कदम हवेली के अदंर जाने की तरफ़ बढ़ा दीया..
हवेली के प्रवेश द्वार के दहलीज़ को पार करते हुए थानेदार के कदम सभागृह(हॉल) में पड़ा! सरपंच कुर्सी पर बैठकर चाय की चुस्कीया ले रहा था|
सरपंच की नज़र थानेदार पर जैसे ही पड़ी,उसने चाय का कप एक तरफ़ रख दीया|
थानेदार के साथ दो हवलदार थे...थानेदार सरपंच के सामने आकर खड़ा होते हुए बोला-
नमस्कार....सरपंच जी!! मेरा नाम प्रताप है...और में इस गांव का नया दरोगा हूं|
सरपंच ने दरोगा की बात को सुनते हुए...उसे बैठने का इशारा कीया|
तब तक पीछे से दीनेश भी हवेली के अंदर आ गया था...और वो सीधा जाकर सरपंच के बगल में खड़ा हो गया|
सरपंच का बैठने के लीये इशारा पाकर दरोगा ने...अपने डंडे को घुमाते हुए कहा-
दरोगा- माफ़ कीजीयेगा सरपंच जी, मैं यहां बैठने के लीये नही आया हूं । मुझे पता चला की आप इस गांव के ठाकुर होने के साथ-साथ इस गांव के सरपंच भी है तो आप से मीलने चला आया...! सुना है की, आप की इस गांव में बहुत इज्जत है?? लेकीन सूत्रो की माने तो आप चरस, अफ़ीम, गांजा और ना जाने कैसे-कैसे गैर कानूनी काम करते है...!
दरोगा की ये बात दीनेश के कानो में पड़ते ही, उसके पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी| वो भोचक्का होकर सरपंच की तरफ़ देखने लगा..
दरोगा की बात पर सरपंच के चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गयी...जीसे देखकर दरोगा आश्चर्य चकीत रह गया|
दरोगा आश्चर्य भरी आवाज़ में बोला-
दरोगा- कमाल है सरपंच जी...आपका काला चीट्ठा मेरे पास है, जो आपके इज्जत को पल भर में मीट्टी में मीला सकता है और आपको जेल के सलाखो के पीछे कर सकता है....लेकीन आप हैरान होने के बज़ाय हस रहे है??
'दरोगा की बात सुनकर...कुर्सी पर बैठा सरपंच अपने एक पैर को उठाते हुए दुसरे पैर पर रखते हुए बोला-
सरपंच- बल्कुल ठीक कहा दरोगा जी...!! आप के पास हमरी पूरी करतूत की जमां-पूजीं है, लेकीन...
ये कहकर....सरपंच हसने लगा....!
सरपंच को हसता देख...दरोगा बौखला गया, और उसने बौखलाते हुए कापतें लहज़े में बोला-
दरोगा- ल....लकीन क...क्या????
सरंपच, दरोगा के कापतें हुए लफ्ज़ो को सुनने के बाद बोला-
सरपंच- लेकीन....लेकीन आप तो हमारे पास हो ना!!
इतना कहकर सरपंच हसने लगा....सरपंच को हसता हुआ देख, सरपंच के आदमी भी हसनें लगे |
दरोगा....बेचारा एकदम से बौखला गया, और हड़बड़ाते हुए उसने अपने कापंते हाथो को कमर तक ले जाते हुए बंदूक को नीकालते हुए सरंपच की तरफ तान देता है और बोला-
दरोगा- अ....आप मुझे धमकी दे रहे है?? एक दरोगा को..?
सरपंच ने दरोगा के हाथ कापं रहे थे...उसके माथे पर पसीनो की बूदें उमड़ आयी थी|
सरंपच अपने चेहरे पर मुस्कान लीये कुर्सी पर से उठा...और दरोगा के नज़दीक जाकर अपने कधें पर रखे गमछे से दरोगा के पसीने को पोछते हुए बोला-
सरपंच- अरे...नही दरोगा साहब, हम धमकी नही देते है, सीधा जान ले लेते है! लेकीन वो क्या है ना दरोगा साहब आप को मारुगां फीर आप के जगह कोयी और आयेगा वो भी बेचारा....मतलब फीर यही चलता रहेगा! तो इससे अच्छा होगा की हमारा खाओ और कुत्ता बन कर हमारे तलवे चाटते रहो....
सरपंच इतना कहने के बाद....वापस कुर्सी पर जाकर बैठ गया..! दरोगा की हालत को मानो लकवा मार गया हो...वो एकदम सन्न होकर खड़ा था और होश में आते ही वो सीधा सरपंच के कदमो में गीर गया....!
"गर्मी की रात थी...चादं आसमान में रौशन था और चंचल हवाएं चल रही थी|
कम्मो घर के आगंन में सोने की तैयारी कर रही थी| उसने आगंन में अपना और अपने बेटे का बीस्तरा लगा दीया...
'चंदू अपने घर के पीछवारे बने एक पुलीया पर बैठा...अपनी मां के बारे में सोचते हुए उसका लंड खड़ा हो गया!!
चंदू के उपर अब जवानी असर दीखाने लगी थी...उसके मां की कामुक अदायें और बाते उसके लंड में आग लगा चुकी थी और उसका लंड अब बुर की गरमी मांग रहा था|
चंदू पुलीया पर बैठे हुए कुछ सोचा और फीर, घर की तरफ़ चल पड़ा...