लंड की प्यासी गांव की घोड़ीँयां
हैलो दोस्तो, मै सुधीया वर्मा इस साईट की नयी लेख़िका| ये मेरी पहली कहानी है."गाँव की प्यासी घोंड़ीयां" जो एक कामुक गाथा है| इस कहानी में आप पढ़ेगें की, कैसे गाव की प्यासी औरते अपने तन की प्यास बुझाती है? यद्यपी ये कहानी गंदी बातों और गाँव की चुदाई से भरी हुई एक कामुक रासलीला है| जीसमें आपको माँ-बेटे की चुदाई, बहन-भाई की चुदाई, परीवार में चुदाई, नाज़ायज संबध आदी सब आधारित एक काल्पनीक गाथा है| जीसे मैने अपनी सेक्स डायरी से नीकल कर आप सब के सामने पेश कीया है| इस कहानी का कीसी भी वास्तवीकता से कोई संबध नही है, संबध होना मात्र एक संयोग वश होगा| इस कहानी में जो भी संबध आप सब के सामने प्रस्तुत होगें; यक़ीनन उस संबध को हमारे समाज़ में मान्यता नही है| अत: नीवेदन है, की जीस कीसी भी हमारे पाठक को ऐसी कहानी पसंद ना हो, क्रपया वो इस कहानी को ना पढ़े| और पढ़ने मे दीलचस्पी रखने वाले पाठक एंव पाठीका का दील से स्वागत है..| आशा करती हूँ की मेरी लेख़नी से लीख़ी ये कहानी, हमारे पाठकों के लंड से और पाठीकाओं की चूत को आनंद पहुचानें में कारगार हो। पसंद आये तो कहानी के बारे में अपनी सराहनीय राय कमेंट के माध्यम से ज़रुर दें| या मुझे मेल करें meenakisexdiaries@gmail.com
धन्यवाद:
तो चलीयें शुरु करते हैं लंड को खड़ा और चूत को गीला कर देनी वाली...
एक गाँव की गंदी चुदाई कहानी - लंड की प्यासी औरतों की चूत
अरे...वाह रे काकी, तू तो बहुत बड़ी छीनाल है रे! अपनी ये मस्त घोंड़ीयों जैसी गांड इसी छीनालपन से बनाई है का?"
खेत के बने पगडंडीयों पर एक 45 साल की औरत के साथ एक 17 साल की लड़की चलते हुए बोली-
'दोने चलते-चलते रुक जाती है। दोनो के हाथ में दो बड़ी सी टोकरी थीं, जो अपने कमर पर सहारा दीये हुए अपने हाथों से पकड़ी हुई थी| दोनो वहीं अपनी-अपनी टोकरीयों को खेंत में फेंकते हुए बैठ जाती है। और टोकरी में से खुर्पी (घास छोलने वाला औज़ार) को हाथ में लेते हुए; घास छोलने लगती है।
घास छोलती हुई 42 साल की औरत ने, उस लड़की को जवाब देते हुए बोली-
"अरे...नीशा बीटीया! ठीक कहा तूने! कोई मस्त चुदक्कड़ गाँव की घोड़ी ऐसे ही थोड़ी बन जाती| पहले मैं भी तेरी जैसी एकदम शर्मीली और संसकारी लौंडीया थी| मुझे छीनाल बनाने वाली मेरी एक सहेली थी| उस रंडी की मां गाँव की लंगड़ी घोड़ी थी| जीसने अपनी बेटी को चुदवा कर एक नई चुदक्कड़ घोड़ी उस गाँव की बाना दी थी|"
"वाह री...मेरी छीनाल काकी! अच्छा इक बात बता काकी? उस लंगड़ी घोड़ीं यानी तेरी सहेली की मां के छीनाल-पन का कीस्सा मुझे भी तो सुना? और क्या छीनालपन में बहुत मज़ा आता है क्या?" - घास छोलती हुई नीशा ने पूछा|
"अरे..पुछ मत नीशा बीटीया! ये सब बाते आज भी कोई करता है तो; मेरी बुर पनीया कर फुदफुदाने लगती है|" - हाथ में छोली हुई घास को टोकरी में डालते हुए; उस औरत ने जवाब दीया|
"सच में...काकी! इतना मज़ा आता है छीनालपन में?" --नीशा ने उत्सुकता वश पूछा|
"एक बार छीनाल बन कर के तो देख; फीर देखना की कीतना मज़ा आता है| बोल..बनेगी छीनाल?" - उस औरत ने अपने होठो पर मुस्कान बीख़ेरते हुए पूछा|
ये सुनकर तो, नीशा का चेहरा शर्म से लाल हो गया| उसने अपने चेहरे को नीचे छुकाते हुए शर्माते हुए बोली-
"धत्...! मुझे नही बनना छीनाल-वीनाल| मां कहती है..ये सब गलत काम है, और इसमे बहुत बदनामी होती है|"
नीशा की बात सुनकर, वो औरत एक बार फीर से मुस्कुराई और फीर बोली-
"अरे...हरज़ाई! बदनामी है तभी तो मजा है|" -औरत|
"जब इतना मज़ा आता है, तो बदनामी क्यूँ होती है काकी?" - नीशा ने कहा|
"तू ये सब छोड..! बदनामी के बारे में मत सोच| देखना मैं तूझे एकदम मस्त छीनाल बनाउंगी| तेरी ये कली जैसी जवानी को; मोटे लंड से कुटवाउगीं|" उस औरत ने बेबाकी से बोला|
नीशा को अब इन-सब बातों में मज़ा आने लगा था| वो फीर से शर्माते हुए बोली-
"धत्...! छीनाल काकी|"
"का सुधीया दीदी...कैसी हो?"
ये आवाज़ सुनते ही, वो औरत और नीशा ने मुंडी घुमाते हुए देखा तो, एक औरत टोकरी में घास भरे हुए उन दोनो के नज़दीक आ रही थी| इस औरत के बोलने से ये तो पता लग गया था की; नीशा को छीनाल बनाने जा रही औरत का नाम सुधीया था| सुधीया नाम की औरत दीखने में बेहद कामुक थी| उम्र तो 42 थी लेकिन बदन पर कुछ फर्क नही पड़ा था| तभी वो औरत एक-दम करीब आते हुए एक बार फीर बोली--
"का बात है सुधीया दीदी? तुम्हारी गांड दीन ब दीन इतनी चौंड़ी कैसी होते जा रही है? ऐसा लग रहा है की, अभी साड़ी फाड़ के तुम्हारी गांड के दोनो पलझे बाहर नीकल आयेगें" - और ये कहकर वो औरत हीं..हीं करके हसंने लगती है|
सुधीया उसको आँखें तरेरते हुए बोली--"तेरी भी गांड कीसी से कम है का री?पूरा गाँव जानता है, तेरी जैसी गांड तो गाँव की कीसी भी औरत के पास नही| पूरी गोल-गोल, तभी तो पूरे गाँव के मरद कुत्ते जैसे दुम हीलाते रहते है तेरे पीछे| तेरी मोटी जांघे और मोटी चौड़ी गांड एक बार कोई नंगी देख ले तो, उसका कल्यान ही हो जाये| कमाल का बदन दीया है उपर वाले ने तूझे- मेरी औकात कहां तेरे आगे| तेरी भी तो दीन ब दीन उपर उठ रही है| कोई देख ले तेरी गांड तो बीना ठोके ना छोड़े...हरज़ाई|"
सुधीया की बात पर हसंते हुए; वो औरत खेंत में अपनी घास से भरी टोकरी रखते हुए; वहीं उनके पास बैठ जाती है| नीशा तो बेचारी इन दोनो की बात सुनते हुए हैरान थी|
सुधीया-- "और बता मीना? कैसी है?"
मीना सुधीया से २ साल उम्र में छोटी थी| और दोनो ही कमाल की कामुक औरत थी| उन दोनो के अंग जहां-जंहा से बढ़ने चाहिए थे, वहीं-वहीं से बड़े थे| बस सुघरी के पेट पर थोड़ी चर्बी आ गयी थी; और मीना की दूधीया रंग और सुड़ौल चूंचीया और मासूम गोरा मुखड़ा उसे और मस्त कामुक औरत बनाती थी|
मीना--"मैं तो ठीक हूँ दीदी! अपनी बताओ? ये चमेली की छोरी को कहां लीये घुम रही हो? कहीं इसे भी तो छीनाल बनाने की...? हीं..हीं..हीं!"
सुधीया के चेहरे पर एक मुस्कान बीख़र पड़ती है...
सुधीया--"अब तू ही समझा इस छोरी को की, छीनालपन में कीतना मज़ा है?"
मीना, अपनी आँखे नचाती हुई नीशा की तरफ़ देखती है| मीना को अपनी तरफ देखते हुए; नीशा शर्मा जाती है और अपना सर अपने घुटने में डाल लेती है| ये देख मीना के होठो पर एक ज़हरीली मुस्कान बीख़र पड़ती है|
मीना--"अरे..हमसे काहे शरमा रही है छोरी? जो तेरे पास है; वही हमारे पास भी है| फर्क इतना है कि, तेरी अभी खुली नही है और हमारी बंद नही होती| हीं..हीं..हीं! एक बात बताउं दीदी? एक-दम कच्ची माल है जो भी चढ़ेगा भूल नही पायेगा|"
नीशा बेचारी तो मारे शर्म के मरी जा रही थी| उसकी कच्ची जवानी के बारे में जीस तरह मीना ने बख़ान कीया...एक पल के लिये तो नीशा को गुस्सा आया, लेकीन अगले पल ही उन्ही बातों से उसकी बुर में ख़ुजली भी मचने लगती|
सुधीया--"वही तो सोच रही हूं...मीना! की इसके लंड की ब्यवस्था कहां से करुं?"
मीना--"कहीं और कहां दीदी? तुम्हारा यार है ना?..जुबेर| उसके हवाले कर दो एक रात के लीये, रात भर में ठोक-ठोक कर इसकी तबीयत ठीकाने लगा देगा|" "
नीशा बेचारी अपने बारें में ऐसी गंदी बाते सुनकर हैरान रह गयी| मगर कुछ बोल ना पायी, और वैसे ही मारे शर्म के अपना मुहं घुटनो में छुपाये, खुर्पी को उलट-पुलट रही थी|
सुधीया--"अच्छा...! मेरा यार...|जब भी चोदता है मुझे तो तेरा ही नाम ज़पता रहता है| और जो बेरहमी से चोदता है मुझे की पूछो मत| इस उम्र में जब मेरी हालत पतली हो जाती है तो, ये बेचारी तो मर ही जायेगी| "
ये सुनकर, मीना के चेहरे पर शरम के भाव उमड़ पड़ते है| ये देख कर सुधीया मन में सोचते हुए खुद से बोली- लगता है की, जुबेर की कीस्मत जल्द ही रंग लाने वाली है |" ये सोचने के बाद सुधीया एक बार फीर बोली-
सुधीया -"बात तो तू...वैसे ठीक ही कह रही है मीना| आज़ कल के नौसीखीया बच्चे तो, ठीक से कुंवारी बुर खोल भी नही पायेंगे!"
मीना--"अरे काहे का नौसीखीया दीदी! बता रही हूं दीदी...आज कल के बच्चों का दोनो पैर उठने से पहले तीसरा पैर उठने लगता है। मै तुमको अपने ही बेटे की बात बताती हूं...कल रात को खाट पर सोते बख़त मैने अपनी साड़ी को पेट तक सरका लीया| इ सोच कर की थोड़ा मेरी मुनीया हवा खा ले! और फीर मैं ऐसे ही अपनी आँखें बंद कीये पड़ी अपनी मुनीया को हवा खीला रही थी की तभी...अचानक! मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी मुनीया को सहला रहा है|"
सुधीया आश्चर्य के साथ बोली--"हाय...राम! कौन था मुआ रे?"
मीना--"यही जानने के लिए, तो दीदी मैने जब अपनी आँखे खोली तो, घर में अंधेरा होने की वज़ह से कुछ पता नही चला| लेकीन तभी मेरी कानो में जो हल्की आवाज़ गूंजी, उस आवाज से तो मेरी मुनीया पानी छोड़ने लगी|"
सुधीया और नीशा दोनो हैरत से मीना की बाते सुन रही थी| तभी सुधीया उत्सुकता वश पुछी--
सुधीया--"कैसी...आवाज?"
मीना--"वो आवाज थी(मेरी मां की प्यारी मुनीया)|"
सुधीया और नीशा के तो होश ही उड़ गये थे| फीर भी सुधीया ने खुद को काबू में करते हुए पूंछी--
सुधीया--"हाय...राम! इसका मतलब की वो तेरा बेटा...?"
मीना--"हां रे दीदी...! वो बल्लू ही था|"
सुधीया और नीशा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव झलकने लगे थे| हज़ारों सवाल थें मन में...| नीशा के लीए ए सब नया अनुभव था, जो उसके शरीर में एक अजब सी हलचल और ख़ुमारी पैदा कर रही थी| और मन तो मचलने लगा था...लेकीन वो भी इसी मां-बेटे के कारनामों के कश्मकश में उलझी हुई ब्यंगता से बोल पड़ी..
नीशा--"द..ईया रे! काकी तूने उसे रोका क्यू नही फीर?"
मीना अपनी आंखे नीशा की तरफ नचाती हुई मुस्कुरा पड़ी| और एक ठंढी आहें भरते हुए बोली-
मीना--"आ..ह! रोकना तो मैं भी चाहती थी रे..! लेकीन वो मेरी मुनीया को इतनी प्यार से सहला रहा था की...?" क्या बोलूं?
नीशा तो स्तब्ध रह गयी..! ये सोचते हुए की, यंहा तो इसकी मुनीया में भी आग लगी है| काकी भी तो एक नंबर की छीनाल लग रही है। तभी तो अपने ख़ुद के बेटे से अपना भोंसड़ा सहलवा रही थी| उ..फ, मैं भी कीन छीनालों के बीच फंस गयी? पता नही ये दोनो बुरचोदी मुझसे क्या-क्या कारनामें करवायेगीं?
सुधीया--"क्या सोच रही है...हरज़ाई?"
एक छटके में ही नीशा अपनी सोंच की दुनीया से बाहर नीकलते हुए बोली...
नीशा--"कुछ नही...बस यही की, अगर बल्लू ने कुछ उल्टा-पुल्टा काम कर दीया मीना काकी के साथ तो?"
हीं...हीं...हीं! मीना हींहींयाते हुए हसं कर बोली...
मीना--"अरे नही रे...बुरचोदी! अभी उसकी इतनी हीम्मत भी नही बढ़ी है| की अपनी मां को ही चोद दे| वैसे मैं ये सोच कर पागल हुई जा रही हूं की, आज रात वो क्या करेगा? खाली बुर ही सहलायेगा या फीर कुछ और..?.हीं...हीं...हीं|"
मांला को इस तरह हसंते देख, नीशा मन में सोचने लगी की 'वाह रे भोंसड़ाचोदी...कहती है की, बेटे की अभी उतनी बड़ी हीम्मत नही है! और खुद आज़ रात अपनी भोंसड़ी खोलकर...! छी: छी: रंडी कहीं की..|'
मीना--"अच्छा...दीदी! मैं चलती हूँ| घर का बहुत काम पड़ा है|"
ये बोलकर मीना अपनी घास से भरी टोकरी उठाती हुई अपने कमर पर रख लेती है| और जैसे जाने के लिए पलटती है...
सुधीया--"सुन जरा...छीनाल! जरा हमें भी बताना, की आज रात तेरे छोरे ने तेरी मुनीया की नदी में से; कीतना पानी नीकाला?"
सुधीया की बातो पर, मीना मुस्कुराते हुए बोली...
मीना--"अरे..काहे नाही दीदी! जरुर बताउंगी| अच्छा मैं अभी चलती हूं|"
ये कहकर मीना, ख़ेत की पगडंडीयों पर पांव रखते हुए वहां से चलते बनती है।
कहानी जारी है...