दो चुदक्कड़ हरामख़ोर
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पार्ट-3
कल्लू...अपने घर के आंगन में खाट पर बैठा था| उसके ज़हन में अभी भी उसके मां की वो कामुक बाते चल रही थी|
तभी उसकी मां सरला आगन में आ गयी, उसके हाथो में जुठे बर्तन थे..शायद वो उसे धोने के लीये आयी थी|
सरला, बर्तनो को नीचे रखते हुए कल्लू की तरफ देखते हुए बोली-
सरला- कल्लू...बेटा, जा..जाके कुवें पर से एक बाल्टी पानी तो लेते आ, मुझे बर्तन धोना है|
अपनी मां की बाते सुनकर...कल्लू खाट पर से उठते हुए, पास में पड़ी बाल्टी लेते हुए आँगन से बाहर नीकल जाता है...
कल्लू, जैसे ही कुएं पर पहुचतां है...उसने देखा की कमला उसकी चाची भी कुएं पर पानी भर रही थी|
कल्लृ भी कुएं पर पहुचं कर बाल्टी रख कर खड़ा हो जाता है...तभी कमला की नज़र उस पर पड़ जाती है|
कमला- अरे...कल्लू, कल तू मुझसे नाराज़ होकर क्यूं चला गया??
कल्लू , अपने चाची की बात सुनते हुए थोड़ा नाराज़ होकर बोला-
कल्लू- चाची तू मुझसे बात मत कर...मुझे तुझसे कुछ भी बात नही करनी है!!
कल्लू की बात सुनकर...कमला पानी की बाल्टी को रस्सीयो से खीचती हुई बोली-
कमला- अरे....कल्लू, मुझे पता है तू मुझसे क्यूं नाराज़ है?? लेकीन अब तू ही बता की इसमें मेरी क्या गलती जब लोग मुझे घुर-घुर कर देखते है तो...??
अपनी चाची की बात सुनकर...कल्लू बीना कुछ बोले, कुएं से पानी नीकालता है और वंहा से चला जाता है|
ये देख कमला अपने मन में बोली-
कमला (मन में)- बड़ा आया.....मुझ पर लगाम लगाने.! बेटा...तुझ पर लगाम तो मै कसूगीं अपना..!!
कमला, अपने मन में खुद से कहते हुए पानी की बाल्टी उठाती है और वंहा से चल देती है...
कल्लू, आगंन में पहुचं कर पानी की बाल्टी अपनी मां के बगल में रखता है, और वापस खाट पर आकर बैठ जाता है|
कल्लू की नज़र उसके मां पर टीकी थी...सरला बैठ कर बर्तन धो रही थी और ब्लाउज़ में से उसकी चुचीयों का कुछ हीस्सा बाहर की तरफ नीकल देख कल्लू के अंदर सीरहन उठने लगी...-|
कल्लू, अपनी मां की चुचीयों को नज़रे बचा-बचा कर देखता, ताकी उसे उसकी मां को पता ना चले|
''सरला...बर्तन धोने के बाद आंगन से चली जाती है...जाते हुए उसके भारी-भरकम नीतबं हीलता देख कल्लू अपना हाथ पज़ामें के उपर से ही अपने लंड पर रख लेता है....और सोचने लगता है|
कल्लू (मन-में)- ज़रुर कुछ ना कुछ मां के मन में चल रहा है...कहीं मां चंदू के साथ कुछ....नही...| मुझे मां के उपर नज़र रखनी पड़ेगी....
और इतना सोचते हुए कल्लू खाट पर से उठा...और बाहर नीकल जाता है....
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**********
कल्लू के कदम गांव से होते हुए उसके खेतो की तरफ़ बढ़ रहे थे...रास्ते में ही चंदू का घर पड़ता था|
कल्लू जब चंदू के घर के सामन पहुचां तो देखा की कम्मो घर के बाहर ही बैठी थी|
कल्लू के कदम अचानक से वही रुक जाते है और सहसा ही कम्मो की नज़र कल्लू पर पड़ जाती है | कम्मो ने इशारा करते हुए कल्लू को अपने पास बुलाया...
कल्लू के कदम अब कम्मो की तरफ़ बढ़ गये....कल्लू अब कम्मो के सामने खड़ा था**
कम्मो, खाट पर बैठी हुई कल्लू से बोली-
कम्मो- अरे....कल्लू, कहां जा रहा है??
कम्मो की बात सुनकर...कल्लू ने जवाब में कहा-
कल्लू- कही नही....दायी, बस अपने खेतो की तरफ जा रहा था। वो भैसं के लीये चारा लाने जा रहा था|
कल्लू की बात सुनकर...कम्मो ने कहा कामुक भरे अंदाज मे बोला-
कम्मो- मानन पड़ेगा कल्लू बेटा...तूने अपने भैसं को खुब चारा खीलाया है...तभी तो जब मेरा सांड उस पर चढ़ता है तो तेरी भैसं के कदम थोड़ा बहुत ही डगमगाते है|
कल्लू को कम्मो की बात पर अजीब सी चुभन हुई....उसे कम्मो की बात सुन कर ऐसा लगा मानो जैसे उसके घर की इज्जत वो कम्मो के घर छोड़ गया हो और उस इज्जत की धज्जीया कम्मो का साडं उस पर चढ़ कर उसे तार-तार कर रहा हो...
कल्लू के अंदर अब चीड़चीड़ापन सा होने लगा....वो कम्मो की बात का कोयी जवाब नही दे पाया| और चुपचाप अपना सर नीचे कीये वही खड़ा रहा...
ये देख कम्मो के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान बीखर गयी और उसने कहा.....
कम्मो- अच्छा....बेटा, ठीक है तू जा....
कम्मो की बात सुनकर कल्लू वंहा से अपने खेत की तरफ़ नीकल चल देता है....
""और इधर चंदू भी अपने कमरे में लेटा-लेटा...अपनी मां की कामुक भरी हरकतों के बारे में सोच रहा था| चंदू के शरीर में एक उत्तेजना सी प्रकट हो जाती है|
और ये उत्तेजना जायज़ भी थी....क्यूकीं चंदू ने आज से पहले कभी कीसी औरत को ऐसे नही देखा था...वो यौन सुख से एकदम परे था| लेकीन फीर भी जब उसकी मां कम्मो अपने मस्त बदन के कोमल और खुबसुरत अगों के खास जगहो पर हाथ लगाती तो ना जाने क्यूं चंदू के मन में भी एक लालच सा होने लगता की वो भी उस अगों को छू सके|
चंदू को इतना तो पता था की औरतों के साथ कीस प्रकार से प्यार कीया जाता है....लेकीन वो इस बात को भी जानता था की, इस प्रकार का प्यार वो अपनी मां के साथ नही कर सकता, क्यूकीं संसकार इसकी इज़ाजत नही देता| और उसे संसकार अपने पीता से मीले थे....जो 2 साल पहले गुज़र गये थे....|
उसके मन में एक सवाल और उठ रहा था की....आज से पहले मां ने कभी भी ऐसी हरकत नही की थी, तो फीर अचानक मां का ऐसा रुप....क्यूं??
चंदू खुद से ही सवाल करता....लेकीन उन सवालो का जवाब वो नही जानता था| और शायद जानना भी नही चाहता था....क्यूंकी उसे उसके मां की वो कामुक भरी बाते और हरकते उसके मन को अच्छे लगते थे|
चंदू के नज़रो के सामने वो दृश्य घुमने लगता है....जब साडं सरला के भैस के उपर चढ़ कर उसे चोद रहा था, ये सोचते ही चंदू के लंड में शीरकत होने लगी...चंदू की आखें बदं थी और वो भैसं की चुदाई में खोया हुआ था...उसका ख्याल सांड के बड़े लंड पर था जो भैस के भोसड़ में पूरा अँदर तक पेल देता था...और साडं का लंड घुसते ही...भैस छटपटा जाती|
इन मस्त ख़यालो में खोया...चंदू को इस समय ये भी नही देख पाया की, उसके लंड में आग लग चुकी थी और उसका लंड उसके ढ़ीली बंधी हुई लूगीं से नीकल कर अपना सर उठाये आसमान की तरफ खड़ा था |
इस बात से बेख़बर कम्मो, बाहर बैठी खाट पर से उठ कर घर के अँदर की तरफ़ बढ़ी...
जैसे-जैसे कम्मो के कदम चंदू के कमरे की तरफ़ आगे बढ़ते, वैसे-वैसे चंदू का लंड और उत्तेजीत होता|
मानो जैसे चंदू के लंड को कम्मो के बुर की आने की भनक सी लग गयी हो...
चंदू इस बात से बेखबर था की, उसकी मां के कदम उसके कमरे के तरफ़ ही बढ़े आ रहे है|
''जैसे ही कम्मो ने कीवाड़ का एक पलझा थोड़ा सा ही खोला था की...उसकी आखों के सामने, उसके बेटे का वो हथीयार नज़र आया..|
कम्मो, इससे पहले की कुछ समझ पाती...उससे पहले ही उसने अपने कदम पीछे खीचतें हुए कीवाड़ को बंद कर दीया| और वही दीवार से सटते हुए अपने सीने पर हाथ रख लेती है|
''कम्मो के नथुने फुलने लगे थे....सांसे तेज होने लगी थी, उसने आज जो देखा, वो उसने अपनी जीदंगी में देखा तो था लेकीन आज़ उसने अपने ही बेटे का शानदार लंड की एक झलक देख ली उसने||
ऐसा शानदार लंड उसने कभी नही देखा था....चंदू के लंड की लम्बाई और चौड़ाई कम्मो के ज़हन को झीझोंड़ दीया था|
''तेज चल रही सासों की वज़ह से कम्मो की दुधारु और गोरी छातीया...उपर नीचे हो रही थी| कम्मो के मन में चंदू के लंड को देखने की चाहत उमड़ने लगी| उसने धीरे-धीरे अपना एक हाथ कीवाड़ के एक पलझे पर रख कर थोड़ा सा खोल दीया....
और खोलते ही....उसकी आखें फटी की फटी रह गयी, चंदू का शानदार मोटा और लंबा लंड एकदम उचांयी लीये खड़ा था|
कम्मो एक दम से अपना हाथ अपने मुह पर रख लेती है....इसका शायद यही संकेत था की सच में उसने आज तक ऐसा शानदार लंड नही देखा था|
इससे पहले की कम्मो चंदू के लंड को जी भर के नीहार पाती, चंदू खाट पर से उठ कर बैठ जाता है|
चंदू को उठता देख....कम्मो बौखला जाती है||
और वो वहां से तुरतं नीकल जाती है....
सरपचं का बेटा दीनेश गावं के नुक्कड़ पर अपने कुछ दोस्तो के साथ बैठा था| तभी वंहा से सुधा घास का गट्ठर लेकर गुज़र रही थी|
दीनेश की नज़र सुधा के मटकते हुए कमर पर पड़ी...सुधा ने एक चुड़ीदार सलवार पहन रखी थी, जीसमे उसके मध्यम आकार का नीतबं(गांड) कसे हुए थे| ये देखकर दीनेश ने सुधा को छेंड़ते हुए बोला-
दीनेश- का..रे..भोदूंआ...पेड़ों में टीकोरा लगने लगा...और साला हमे पता ही नही चला|
दीनेश की बात सुनकर...सुधा को गुस्सा आ गया, उसने अपना मुह बीचकाते हुए बड़बड़ायी...
सुधा - हरामी....कुतरया कहीं का...!!
सुधा गुस्से में बड़बड़ाती हुई आगे नीकल गयी....
पर दीनेश और उसके दोस्त वहीं बैठकर....हस रहे थे....| हंसते हुए अचानकर से दीनेश के चेहरे पर गुस्से के बादल छा जाते है...और वो अपना दांत रगड़ते हुए खुद से बोला-
दीनेश- कुतरया बोलती है..... साली! दीनेश ठाकुर नाम है हमरा....साली! तेरे बदन को ऐसे नोच-नोच कर मज़े लूटुगां साली तब तूझे पता चलेगा...
इतना कहते हुए दीनेश ने अपनी ज़ीप चालू की...और गांव की तरफ गाड़ी को बढ़ा दीया.....