गाँव की प्यासी घोड़ीयां - (gaon ki pyasi ghodiya)
भाग - ४लेख़ीका- मीना शर्मा
उस रात मीना की आंखों में नींद, दूर-दूर तक नही थी| घर के छत पर लेटी मीना, अपनी साड़ी को खींचते हुए पेट तक चढ़ा ली थी|
वो नीचे से पूरी तरह नंगी थी| रात के अंधेरे में, बगल में लेटी उसकी बेटी फूलवा को भी भनक नही लगी की, उसकी मां अपने बेटे से खुद की बुर सहलावाने के लीये; साड़ी कमर तक चढ़ा कर लेटी है|
दूसरी तरफ़ लेटा बल्लू की, हालत कुछ ऐसी ही थी| वो भी आज अपनी माँ की बुर को जी भर कर सहलाना चाहता था| और मीना भी तो यही चाहती थी| इसी-लीए तो उसने अपनी साड़ी को पहले से ही चढ़ा ली थी|
बल्लू का लंड झटके पे झटके मार रहा था| उसने अपने सूख गये होठो पर, जीभ फीराते हुए; अपने होंठो को गीला कीया और धीरे-धीरे अपना हाथ उठाते हुए; मीना के पेट पर रख देता है|
बल्लू का हांथ अपने पेट पर अहसास करते ही, मीना की सांसे बढ़ने लगी| अब बल्लू धीरे-धीरे मीना के पेट को सहलाने लगा...
मीना का बदन गरम होने लगा था| बल्लू ने अपना हांथ पेट पर सहलाते हुए उपर की तरफ़ ले जाते हुए, अपनी माँ के पील्लूओ पर रख देता है| बल्लू का तो जैसे हालत ही खराब हो गया, इतनी मुलायम और मांसल चूंचीयो पर हाथ रखते ही, उसका लंड झटके पे झटके देना लगा|
और इधर मीना की तो सांसे अटक गयी थी| जैसे ही बल्लू का हांथ उसकी सुड़ौल छातीयो पर पड़ती है| उसकी चूंचीयों में मानो खून के फव्वारे उठने लगे हो| उसकी पूल्लू कसने लगी, नीप्पल कठोर होकर खड़े होने लगे थे| वो आंखे बंद कीये अपने होंठो को काटने और चाटने लगी थी|
बल्लू ने धीरे से अपनी मां की दाहीने पील्लू को मसलने लगा| पहली बार कीसी औरत की चूंचीयों को मसल रहा था| और उसे उस समय जो आंनद की अनूभूती हो रही थी| वो बयां नही कर सकता था|
बल्ल्लू ने धीरे-धीरे करीब आधे घंटे तक, अपनी माँ मीना की चूंचीयों का; बारी-बारी से मर्दन करते हुए| मीना को आग की भट्टी बना दीया था, मीना की सांसें तेज हो गयी थी| उसकी बुर में यौवन का रस भर कर, बहने लगा था|
बल्लू का मन कर रहा था की, अभी वो अपनी मां का ब्लाउज़ उतार दें...और जी भर कर उसके पील्लूओं का रस पान करे! मगर अभी भी उसे डर था| और यही सोच रहा था की, उसकी माँ सो रही है| तभी उसे अचानक ही याद आया की...माँ की मुनीया भी तो है|
और इधर बगल में लेटी, फुलवा जैसे ही, अपनी माँ की तरफ करवट लेती है| उसका हाथ उसकी माँ की गीली हो चूकी बुर पर पड़ जाती है| यहां तक की बल्लू का हांथ भी उसी समय मीना के बुर पर पड़ता है|
दो-दो हाथ अपनी बुर पर अहसास करते ही, उसके तो होश ही उड़ गये| इधर अपने हाथो पर गरम भट्टी की तरह तपती और गीली बुर पर हांथ पड़ते ही; फुलवा की भी नींद खुल जाती है, और बल्लू की तो गांड फटी की फटी रह जाती है की; ये दुसरा हांथ कीसका है?
इस समय तीनो की हवाईयां उड़ चूकी थी| बल्लू ने तो झट से अपना हाथ हटाते हुए; दूसरी तरफ करवट ले लेता है| मगर फूलला...जो अब तक अपना मुह हैरत से फाड़ी हुई थी| उसने अपना हांथ नही हटाया, और अपनी माँ की गरम भट्टी पर रखी रही, ताकी उसकी माँ को लगे की वो सो रही है| और उसका हांथ गलती से उसकी मुनीया पर पड़ गया!
फूलवा के हांथ ना हटाने पर, मीना की जान में जान आयी की, फूलवा तो सो रही है और नींद में हाथ पड़ गया होगा!! कुछ देर के बाद, मीना ने फुलवा का हांथ अपनी भोंसड़े पर से हटाते हुए; अपनी साड़ी को कमर से नीचे कर लेती है...बेचारी की गरम भट्टी जलती ही पड़ी रह गयी|
फूलवा ने सारा मज़ा जो बीगाड़ दीया था| मीना दांत पीसते हुए, फूलवा पर मन ही गुस्से में खुब कोसती है| और इधर, बल्लू और फूलवा के दीमाग में एक बात घर कर के बैठ गयी थी की, आखीर ये दूसरा हाथ कीसका था? दोनो का इशारा एक दूसरे की तरफ ही था....! और फीर सोंचते-सोंचते नींद की गहराईयों में खो जाते हैं....
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अगली सुबह...जुबेर की लुगाई, खेत की बनी पगडंडीयों पर कदम बढ़ाते हुए; घर की तरफ़ बढ़ी जा रही थी! उसकी चाल बदली-बदली सी थी| फीर भी वो खाने की थाली लीये खेतो से घर की भचकते-भचकते बढ़ी चली जा रही थी...
रास्ते में उसे एक अधेड़ ब्यक्ती दीखाई दीया, जो दूसरी पगडंडीयों पर से चला आ रहा था| उसकी उम्र कुछ 4५ या 46 साल के लगभग होगी, उस आदमी को देखते ही...जुबेर की लूगाई खुद से बोली-
"अब इसे भी सुबह-सुबह मीलना था"
वो आदमी ने जैसे ही; जुबेर की लूगाई को देखा; अपने कदम तेजी से बढ़ाते हुए उसी पगडंडी पर आ-कर खड़ा हो गया, जीस पगडंडी पर जुबेर की लूगाई चल रही थी|
"अरे का री...शीला, सुबह-सुबह ही, खेतों में! चाल भी बदली-बदली सी है तेरी, लगता है जूबेर ने मज़बूत ठुकाई की है रात भर?"
शीला ये तो जानती थी की, ये है एक नंबर का कमीना, और वो जब भी उससे मीलती थी! तो वो इसी लहज़े में बात करता था...
शीला-"ये...ये कैसी बाते कर रहे हो भाई साहब? कीतने गंदे हो तूम?"
शीला की बात सुनकर, वो आदमी थोड़ा मुस्कुराया और बोला-
"अच्छा...मैं गंदा हूं?क्या मैने कुछ झूंठ बोला? आ..? क्या जुबेर ने रात भर तेरी ठुकाई नही की?..बोल?"
उस आदमी की बात सुनकर, शीला शरम से लाल हो गयी! शीला को यूँ शरमाता देख...वो आदमी एक बार फीर बोला-
"अच्छा...शीला! ये जुबेर, तेरी महीने में कीतनी बार कुटायी कर देता है?"
गाँव की प्यासी रंडीयां
उस आदमी की बात सुनकर, शीला का चेहरा...शर्म से पानी-पानी हुए जा रहा था| वो सोंच रही थी की, कहाँ अपना ये शर्मीला चेहरा छुपा ले...! लेकीन फीर भी, उसने मारे शर्म के अपना चेहरा सीने में घुसाई बोली-
शीला-"भगवान! के लीये, मुझसे ऐसी गंदी बाते ना करो! भाई साहब|"
"अरे...! तू तो शरमा रही है| देख शीला मुझे पता है...! जुबेर ज्यादा-तर उस सुधीया के भोंसड़े में ही घुसा रहता है| और ये बात तू भी जानती है, है...की नही?"
शीला को कुछ समझ में नही आ रहा था की, वो क्या बोले? लेकीन फीर भी उसने उस आदमी की बात को मंजूरी देते हुए-
शीला-"ह्म्म्म्म!"
"देखा...मैं जानता था| इसी-लीए पुछ रहा था| लेकीन फीर भी तूझे नही बताना है तो, कोई बात नही! लेकीन इतना तो बता दे...की, कल रात उसने तेरी गांड भी मारी थी?"
शीला का दीमाग काम नही कर रहा था| उसे कुछ समझ नही आ रहा था की क्या बोले क्या ना? शर्म का परदा उसके चेहरे पर साफ दीख रहा था...अचानक! ही उसके मुह से नीकल पड़ा-
शीला-" ह्म्म्म्म...मारी थी|"
जैसे ही शीला को होश आया तो, खुद को कोसने लगी की ये उसने क्या बोल दीया?
और इधर तो, उस आदमी के लंड ने बल्ले-बल्ले करना शुरु कर दीया| शीला के मुह से ये बात सुनकर, उसका लंड पूरी तरह खड़ा होते हुए, लूंगी में तंबू बना दीया|
शीला, जो इस समय मारे शरम के अपनी आँखे नीची झुकाये हुई थी| उसकी नज़र उसके लूंगी पर पड़ी तो...ठीठक कर रह गयी| वो आदमी ने जब देखा की, शीला उसकी लूंगी में बने तंबू को देख रही है, तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गयी| और बोला-
"चाहो तो, लूंगी हटा कर देख सकती हो! जरा देख कर बताओ तो सही, की तेरे मरद से बड़ा है या छोटा?"
शीला के कानो में, जैसे ही ये शब्द गुंजे, उसकी धड़कने बढ़ने लगी| लूंगी में बने तंबू को देखकर उसकी बुर फुदफुदाने लगी थी| ना चाहते हुए भी, उसका मन लूंगी को हटा कर उसके लंड को देखने को ललचने लगा| लेकीन वो शरम के मारे बस इतना ही बोल पायी-
शीला-"भगवान के लीये! मुझे जाने दो भाई साहब! कोई देख लेगा तो...गज़ब हो जायेगा|"
"अरे...शीला रानी! चारो तरफ़ तो अरहर के पेंड़ उगे हैं! तू ही नज़र घुमा कर देख! तूझे कुछ दीखाई दे रहा है?"
उस आदमी के बोलते ही, अचानक! ही शीला की नज़रे अगल-बगल को उठी और देखने लगी...सीर्फ अरहर के पेंड़ थे|
"देख लीया ना! तू फालतू में ही घबरा रही है! कौन देखेगा हमे? इस घनी अरहर के खेतों के बीच में! चल अब ज़रा हटा मेरी लूंगी! लेकीन तू नीचे घुटनो पर बैठ जा| फीर देख! क्यूँकी अरहर का पेंड़ इतने भी बड़े नही है! हमारा सर दीखाई दे सकता है|"
शीला की दीमाग ने सोंचना शुरु कीया- सही तो है...इस अरहर के खेत में हमे कौन देखेगा? क्या करूँ? हे भगवान...! कुछ समझ में नही आ रहा है! अपने मरद के साथ धोखा भी नही कर सकती! वो भी तो मुझे धोखा दे रहा है...उस सुधीया की कुटायी कर के| मेरे उपर तो कभी-कभी ही चढ़ता है| अगर आज बैठ गयी तो...हमेशा लंड से बुर भरी रहेगि...|
हज़ारो सवाल मन में सोचते हुए, शीला कब नीचे, अपने घुटनो पर बैठ गयी, उसे भी पता नही चला| उस आदमी के लूंगी में बना तंबू! अब शीला की आँखों के सामने था| उससे रहा नही जा रहा था| वो जल्द से जल्द उस लूंगी को खींच कर उसके लंड के दर्शन करना चाहती थी| लेकीन उसे शरम भी बहुत आ रही थी|
शीला-" भाई...साहब! सच में कीसी को पता नही चलेगा ना?"
शीला ने शर्माते हुए...भोले पन में बोली...
"अरे...मेरी रानी! कीसी को पता नही चलेगा! अब चल जल्दी से हटा मेरी लूंगी, और कर ले मेरे लंड का दर्शन"
ये सुनकर, शीला थोड़ा शर्माते हुए मुस्कुरायी और बोली-
शीला-"बड़े...गंदे हो! भाई साहब|"
और बोलते हुए, शीला ने उस आदमी की लूंगी को झट से खींचते हुए अलग कर दीया|
शीला की आँखे फटी की फटी रह गयी| उस आदमी का लंबा-मोटा लंड कीसी रॉड की तरह खड़ा था| शीला खुद को रोक नही पायी, और हाँथ बढ़ाते हुए लंड को मुट्ठीयों में भींचति हुई बोली-
शीला-"दईया...रे...दईया! इतना बड़ा? इसके आगे तो, मेरे मरद का कुछ नही?"
शीला के मुह से ये बात सुनकर, वो आदमी मुस्कुराते हुए बोला-
"शीला...रानी, इससे भी बड़ा लंड है! कभी दीखाउगां तूझे|
क्रमश: