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कम्मो दुधवाली और गांव.....पार्ट1 (कामुक-उपन्यास)


"गांव की दुधवाली"




कल्लू अरे वो कल्लू कहां है तू?? तेरी अम्मा बुला रही है| कल्लू खेत का पंपूसेट ठीक करते हुए , खेत मे बने झोपड़े से बाहर नीकला

कल्लू-

का हुआ चाची, काहे चील्ला रही हो?
कल्लू की चाची

कमला

एक 38 साल की बेहद खुबसुरत औरत है। बील्कुल ऐसी दीखती है...
तस्वीर देखकर आपने आदाँजा तो लगा ही लीया होगा की कमला की जवानी कीतनी मस्त और खुबसुरत है??

कमला-

अरे मै कहा चील्ला रही हूं? मै तो बता रही हूं की तेरी अम्मा बुला रही है|

कल्लू- अरे चाची आ रही थी तो, लेते आती....यहीं खा लेता|

कमला-

अगर घर पर जा कर खा लेगा तो क्या हो जायेगा?

कल्लू-

होगा तो कुछ नही चाची, लेकीन तू नही रहेगी ना वंहा। और तेरे बीना खाना गले के नीचे नही उतरता!!

"कल्लू की बात सुनकर, कमला बोली|

कमला-

अच्छा, बहुत प्यार दीखा रहा है अपनी चाची पर , जब तेरी औरत आ जायेगी ना तो अपनी चाची को भूलकर दीन भर उसके पीछे ही भागेगा!!

कल्लू-

अरे चाची क्या बोल रही है तू? तू इतनी खुबसुरत है की, तूझे कोयी भूल ही नही सकता | तेरी खुबसुरती के आगे तो आज-कल की लड़कीया कुछ नही है|

कमला-

अच्छा , बस कर ज्यादा मस्का मत लगा, और जा जाकर खाना खा ले..!!

कल्लू-

अच्छा चाची मैं जा रहा हूं??

तभी वंहा पर गांव के कुछ 2 लोग आ जाते है |
अरे कल्लू बेटा....का हाल है??
कल्लू ने नज़र उठाकर देखा तो सामने 2 लोग खड़े थे!!

कल्लू-

सब ठीक है, रामू काका....

कमला , उन दोनो को देखते हुए मन सोची-

कमला(मन में)- आ गये कुत्ते , ना जाने क्यूं ये गावं के सारे कुत्ते मेरे पीछे दुम लटकाये पड़े रहते है। घर में खुद की औरत है फीर भी मेरे पीछे भागते रहते है|
वो दोनो उससे कुछ बोलते , इससे पहले ही कमला ने बोला-

कमला-

अरे कल्लू बेटा., ये घास का गट्ठर उठा दे मै भी घर चलती हूं|
वो दोनो....कमला को चोर नज़रों से देख रहे थे...!!

"ये देखकर , कल्लू को उन दोनो पर बहुत गुस्सा आया...साथ ही साथ उसे अपनी चाची पर भी बहुत गुस्सा आया|
क्यूकीं ये रोज़ का हो गया था|
गांव का कोयी ना कोयी कीसी भी बहाने से हर दीन उसके घर पर या खेतो पर पहुचां ही रहता |
और ये सब उसकी चाची कमला के लीये ही आते थे....
और जब कोयी कमला से बोलता तौ कमला को भी बोलना पड़ता
और इसी का गलत मतलब कल्लू नीकाल लेता|
और ये बात कमला को पता थी |

कल्लू को उन दोनो को देखकर गुस्सा आया और बीना अपनी चाची कां घास का गट्ठर उठाये ही वंहा से चला गया...

"कमला बोलती रही, लेकीन कल्लू के कदम रुके नहीं....

बाद में रामू ने घास का गट्ठर उठाया और कमला कल्लू के पीछे-पीछे खेतो से गांव की तरफ़ चल देती है
और वो दोनो वही खड़े होकर कमला के मस्त खुबसुरत नीतबं को थीरकते हुए देखकर आहे भर के रह जाते है....



कहानी के कीरदार....




1- कमला (38)
कमला




3- ममता > 20, कमला की बेटी"

ममताकमला की बेटी




4- हीरा लाल (48) , "कमला के ज्येठ"



5- सरला (42)- हीरालाल की पत्नी

सरला कमला की जेठानी



4- सीमा - (22), "सरला की बेटी"
सीमा - सरला की बेटी


5- कल्लू - (18) , सरला का बेटा"




1- अवधेश (48), "गांव के सरपचं"


2- सुमन (42)- सरपंच की पत्नी"

सुमन - सरपंच की पत्नी




3- कवीता (22), "बेटी"

कवीता - सरपंच की बेटी


4- दीनेश (20) , सरपंच का बेटा "बेटा"




1- फातीमा (40), "आगनं वाणी में काम करने वाली"



2- ज़ोया (20)

ज़ोया- फातीमा की बेटी




1- रामू (38) "सरपंच के घर का नौकर"


2- चंपा (38) "पत्नी"

चंपारामू की पत्नी

3- सुधा(20) - "बेटी"

सुधा - चंपा की बेटी




1.सुरेश (34)- सरपंच के घर का नौकर"




1- कम्मो (38) - DOODHWALI



2- चंदू (20) "बेटा"

बाकी के कीरदार कहानी के साथ नज़र आयेगें...

कमला के जाते ही, दोनो एक ठंढ़ी आहे भरने लगते है|
उनमे से एक ने कहा जीसकी उम्र लगमग 40 के करीब था....
यार शुरेश मैं जब भी कमला और कम्मो को देखता हू, तो मेरा लंड बेकाबू हो जाता है|
पास में ही खड़ा सुरेश, जीसकी उम्र भी लगभर 40 के करीब थी उसने भी कहा...

सुरेश- अरे मुकेश तेरा तो फीर भी ठीक है, तेरे घर में औरत तो है तेरी॥ मेरा तो नसीब ही फूटा है..|

सुरेश की बात सुनकर, मुकेश ने कहा-

मुकेश- तू चीतां मत कर , देखना एक दीन हम दोनो इन दोनो के उपर होगें|

सुरेश- भगवान करे तेरी बात सच हो जाये|


    शाम का समय था, कम्मो खाट पर लेटी अपनी दोनो मांसल और गोरी टागों को खोले हुए अपनी साड़ी के अदंर हाथ डाले थी| तभी अचानक चदूं कही से आ जाता है|

वो सीधा घर के अंदर घुस जाता है, उसका नसीब था की उसकी मा कम्मो की आखें बदं दी और वो चंदू को देख ना सकी| चंदू, अदरं का नज़ारा देखकर दंग रह गया! उसके कदम मानो वहीं जमे के जमे रह गये| चंदू की नज़र जैसे ही अपनी मां की गोरी-मांसल जांघो पर पड़ी, उसकी आखें फटी की फटी रह गयी|

तभी अचानकर, एक बील्ली वंहा आ जाती है और इधर-उधर भागती हुई कुछ सामान गीरा देती है, जीससे कम्मो की आखें खुल जाती है। कम्मो की जैसे ही आखें खुलती है...वो अपने सामने चंदू को देखकर घबरा जाती है। और अपना हाथ अपनी जाघों के बीच से नीकालते हुए खाट पर से खड़ी हो जाती है|| चंदू वंहा से तुरंत ही नीकल जाता है,और अपने कमरे में चला जाता है| मीट्टी के बने कमरे मे चंदू अपने कमरे में लेटा था| उसकी आखों के सामने उसकी मां की गोरी-गोरी मोटी जांघे ही नज़र आ रही थी, वो बहुत उत्तेजीत हो गया था॥ उसके लंड में हरकत होने लगी थी, और धीरे-धीरे उसके लूगीं को उठाने लगी थी|

चंदू का हाथ उसके लंड पर पहुच जाता है की तभी उसकी मां कम्मो उसके कमरे में आ जाती है| चंदू को पता नही था की, उसकी मां कमरे में आ गयी है। वो तो अपनी आखें बंद कीये अपने लंड को लूंगी के उपर से ही मसल रहा था| कम्मो की नज़र अपने बेटे की इस हरकत पर पड़ी तो , कम्मो के चेहरे पर एक मुस्कान की लहर दौड़ गयी|

वो बीना कुछ बोले, चंदू के कमरे से बाहर नीकल जाती है, और दरवाज़े में आकर खाट पर बैठ जाती है| कम्मो के चेहरे पर अभी भी वो मुस्कान बीखरी हुई थी...वो सोचने लगी की,

कम्मो (मन में)- अब चंदू भी जवान हो गया है, कैसे अपने लंड को लूगीँ के उपर से ही मसल रहा था, क्या उसके लंड में हरकत मुझे उस अवस्था में देखने के बाद हुई?

ये सोचते ही कम्मो के दोनो जांघो के बीच भी हलचल मचने लगी, और उसके हाथ भी उसके उस जगह पहुचं गयी| कम्मो अपनी बुर को साड़ी के उपर से ही सहला रही थी की तभी बाहर से आवाज़ आयी| कम्मो.....अरी वो कम्मो...कहा है री..?

    कम्मो बाहर नीकलते हुए देखी की सरला खड़ी थी| सरला के साथ में उसका बेटा कल्लू भी था और कल्लू के हाथ मेँ भैस की रस्सी थी| कम्मो- अरे सरला, कहां मर गयी थी...?तेरा तो कुछ अता-पता ही नही है|


सरला पास में ही बीछे अपनी मोटी और बड़ी गांड को खाट पर रखती हुई बैठ जाती है, उसके साथ ही कम्मो भी खाट पर बैठ जाती है|

सरला- अरे मै तो गांव में ही हूं, तेरा ही पता नही चल रहा है??

कम्मो- अब क्या करुं रे सरला, सारा दीन काम ही काम रहता है|

कम्मो और सरला वही खाट पर बैठे बाते कर रहे थे...तभी कम्मो ने अपनी नज़र उपर उठायी तो उसने देखा की कल्लू की नज़रे उसकी चुचीयों को ताड़ रही थी|
कम्मो, कल्लू की नज़रो को पढ़ लेती है, कम्मो ने एक नज़र अपनी चुचीयों पर डाला तो देखा की , उसकी बड़ी-बड़ी दुधीया चुचीयों का काफी ज्यादा उपरी हीस्सा उसके ब्लाउज से बाहर झांक रहा था|
ये देखते हुए कम्मो ने अपने मन में कहा-

कम्मो(मन में) - अच्छा, तो ये मेरी दुधारु चुचीयों को ताड़ रहा'है..| कम्मो , अभी अपने सोच से बाहर भी नही नीकली थी की, सरला ने आवाज़ लगाते हुए कहा-

सरला- कम्मो.....कहां खो गयी??

सरला की आवाज़ कम्मो के कान में पड़ते ही, वो सोच की दुनीया से बाहर नीकलते हुए बोली-

कम्मो- अ.....क....कहीं नही! बस सोच रही थी की, बेचारा कल्लू कब तक यूं भैस की रस्सी पकड़े खड़ा रहेगा??

कम्मो की बात सुनकर, सरला अपने माथे पर हल्के हाथो से चपेत लगाती है, और चुलबुले अंदाज में बोली-

सरला- लो कर लो बात...तुझसे बात करने के चक्कर में मैं तो भूल ही गयी की, कल्लू भी साथ आया है!! 'अरे कल्लू बेटा भैस को खूटें में बांध दे|

अपनी मां की बात सुनकर, कल्लू भैसं को खूटे में बांधने लगता है| तभी घर के अदरं से चंदू बाहर नीकलता है और सरला की नज़र सीधा चंदू पर पड़ जाती है| सरला की नज़र चंदू पर अटक जाती है और कम्मो सरला की नज़रों को भाप लेती है| कल्लू का बदन उपर से पूरा नंगा था...उसके शरीर की बनावट उसके बलीष्ट होने का अनुमान देती थी| चौड़ी छातीया, और उन छातीयों पर घने घुघुंराले बाल, || ये देखते हुए कम्मो समझ गयी थी की जरुर, सरला मेरे बेटे के बलीष्ट मर्दाना शरीर पर मोहीत हो गयी है||
सरला का यूं उसके बेटे के उपर नज़र अटक जाना , कम्मो के चेहरे पर एक मुस्कान बीखेर देती है| कम्मो ने सरला को हाथो अपने हाथों से झीझोड़तें हुए बोली-

कम्मो- सरला....कहां खो गयी??

सरला , कम्मो को झीझोड़ने की वज़ह से वो अपनी नज़र चंदू पर से हटाते हुए बोली-

सरला- अ....क...कहीं नही!!

कम्मो के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, क्यूकीं वो समझ गयी थी की...सरला झूठ बोल रही थी|
सरला....खाट पर से अपनी चौड़ी गांड उठाते हुए खड़ी होकर बोली-

सरला- अरे...कम्मो ये भैस का मैं क्या करुं?? कुछ समझ में ही नही आता? कम्मो भी, अपनी मतवाली गाडं खाट पर से उठाते हुए ,सरला के बराबर में खड़ी होते हुए बोली-

कम्मो - क्यू क्या हुआ,तेरी भैंस को??

सरला- अरे अब क्या बताऊं तूझे? गाभीन ही नही हो पा रही है ये भैसं पीछले दो साल से!!

सरला की बात सुनकर....कम्मो बोली-

कम्मो- अरे गाभीन होगी भी कैसे? उसके लीये ढ़ंग का साडं भी तो होना चाहीए??

कल्लू और चंदू वहीं खड़े उन दोनो की बाते सुन रहे थे...|
और कम्मो की बात सुनकर सरला...अपनी नज़र चंदू पर डालते हुए बड़ी मादकता भरे स्वर में बोली

सरला- इसी लीये तो, इस बार तेरे घर पर आयी हूं| क्यूकीं तेरे घर के साडं काफी मज़बूत लग रहे है||

अपनी मां का यूं मादक भरे स्वर में चंदू की तरफ़ देखते हुए साडं वाली बात बोलना कल्लू को उलझन में डाल देती है| लेकीन....कम्मो, बखूबी सरला की बात को समझ गयी थी, इसीलीये तो वो सरला से उसी मादक भरी अदाजं में बोली-

कम्मो- तू चीतां मत कर, ईस घर का साडं तूझे नीराश नही करेगा!!

सरला एक बार फीर से तीरछी नज़र से चंदू को देखते हुए बोली-

सरला- मुझे भी पूरा भरोसा है....वाकयी तेरे साडं में दम है ऐसा लग रह है|

ये बात सरला, चंदू की तरफ़ देखते हुए बोली, उसके बाद वो कम्मो की तरफ देखते हुए बोली-

सरला- अच्छा तो अब मैं चलती हूं....अपनी भैसं आज तेरे साडं के हवाले जो मन चाहे वो करे लेकीन मेरी भैसं गाभीन होनी चाहीए!!

और ये कहते हुए...सरला और कम्मो दोनो हंसने लगती है...और फीर सरला अपने बेटे कल्लू के साथ अपने घर की तरफ़ चल देते है...

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