गाँव की मस्त घोड़ीयां - भाग ५
लेख़ीका : मीना शर्मा
गन्ताक से आगे:
शीला की आंखे, उस आदमी के लंड को देखकर फटी जा रही थी| मुट्ठीयों में पकड़ी हुई उस मोटे लंड का सपर्ष पाकर, उसकी बुर की फांके अब खुलने लगी थी...
"ऐसे का देख रही हो शीला? सीर्फ मेरा ही देखोगी की अपना भी दीखाओगी?"
शीला का चेहरा लगातार शर्म से लाल होते जा रहा था| लेकीन ऐसे शानदार लंड को अपने से दूर भी नही रख सकती थी|
इसलीये शीला ने शर्म का चोला हटाने में ही भलाई समझी। और एक बार उस आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरायी, और फीर वहीं खेतों में ही ज़मीन पर लेट गयी...और साड़ी को उपर सकेलते हुए, अपनी टांगे चौंड़ी कर दी|
शीला की बीना झांटो वाली चीकनी बुर को देखकर, उस आदमी की आँखो में चमक आ गयी! और उसका लंड शीला की आंखो के सामने ही झटके पर झटके मारने लगा...
उसके लंड को झटके पर झटके मारते देख, शीला अपनी टांगे चौड़ी कीये; शरमा कर बोली-
शीला-"भाई साहब...! लगता है, आपका ये मोटा डंडा बहुत उतावला हो रहा है"
शीला की बात सुनते हुए, वो आदमी भी नीचे बैठते हुए; शीला के उपर लेट गया| उसका लंड शीला की पनीया चूकी चीकनी बुर पर चीपका था| वो आदमी शीला के होठों को चूमते हुए मुस्कुरा कर बोला-
"बस शीला रानी...अपनी मालपूआ को देखकर__ उतावला हो रहा है|"
शीला ने अपने दोनो हांथ पीछे ले जाते हुए, उसे अपनी बांहों के घेरे में कसते हुए मुस्कुरा कर बोली-
शीला-"तो देरी कीस बात की है, खीला भी तो उसे; उसका मालपूआ! देखो ना बेचारा कैसे फड़फड़ा रहा है|"
"तो तू ही पकड़ कर खीला दे ना उसे!"
इतना बोलते ही; वो आदमी शीला के उपर लेटे हुए ही...अपनी गांड थोड़ा उपर उठा लेता है...
शीला शर्माते हुए; अपना हांथ नीचे ले-कर जाती है! और उस आदमी का लंड पकड़ते हुए; अपनी गीली बुर के मुह पर रखी ही थी की...वो आदमी ने जोर का झटका मारा...और पूरा का पूरा लंड शीला के बूर में समा जाता है!
शीला-"आही...रे माईइईईईईईईईउ...फ़टीईईईईई...ग....ईईईईई...मोरी...बुरीया...आ..,"
अचानक! ही तगड़े झटके से; शीला चील्ला पड़ी थी! वो तो अच्छा था की, उसने जुबरे का मस्त लंड खा-खा के अपनी बुर में जगह बना ली थी; इस-लीये ज्यादा दर्द नही हुआ| लेकीन फीर भी; उस आदमी का लंड तो था जुबेर से एक इंच बड़ा और मोटा भी|
"क्या हुआ...रानी? दर्द हो रहा है?"
शीला-"आ...ही...रे माई; बहुत मोटा है! पूरी की पूरी चौंड़ी कर दी इसने तो! बहुत भूंखा है लगता है...मालपूआ खाने को|"
शीला ने थोड़ा दर्द भरे आवाज़ में हस कर बोली...और फीर अपनी दोनो टांगे उठाते हुए; उस आदमी के कमर पर चढ़ाते हुए इर्द-गीर्द लपेट ली...
"ये बनधारी का लंड है...रानी! ऐसे ही मालपूआ खाता है!"
और ये कहते हुए बनधारी ने, शीला के होठो को अपने मुह में भरते हुए चूसने लगा- और शीला को अपनी गांड उठा-उठा कर करारा धक्का लगाते हुए चोदने लगा|
शीला तो कराह उठी...उसे ऐसे धक्के लगने की वज़ह से, दर्द होने लगा था| लेकीन उसकी बुर से बहता हुआ पानी! इस बात का सबूत था की; उसे बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है!
उसका मुह; बनधारी के मुह में कैद होने की वजह से; वो गू...गू करके रह गयी! और बनधारी तो उसे बेरहमी से चोदे जा रहा था|
शीला-"उँउ,उंउंउब्ब्...उंउंउम्ह्ह्ह्ह्..चोउंउंउदो...ओओ..."
शीला चील्लाते हुए कुछ कह भी रही थी...मगर बनधारी उसका पूरा मूह अपने मुह में घुसाये; दोनो पागलो की तरह चूस रहे थे| शीला का पागलपन देखकर लग रहा था की, उसे चुदाई का मज़ा पहले ऐसा नही आया था|
उसकी बुर की फांके पूरी तरह खुल चूकी थी__ और बनधारी के जोरदार धक्को की वजह से उसकी बुर लबालब पानी छोड़ रही थी| और खेत में फच्च...फच्च की आवाजे हीं गूंज रही थी|
बनधारी उसे बुरी तरह; कीसी रंडी की तरह चोद रहा था| आधे घंडे उसी मुद्रा में चोदते-चोदते उसके धक्के तेज होने लगे! शायद वो उसका भी नीकलने वाला था| और एसा ही हुआ...एक जोरदार धक्का मारते हुए; अपना पूरा लंड शीला की गहराइयो में उतारता हुआ; पानी छोड़ने लगा...
कुछ समय बाद; उसने शीला के मुह को आज़ाद कर दीया! दोनो जोर-जोर से हांफ रहे थे! शीला हांफते-हांफते बोली-
शीला-"ह्ह्ह...ह्ह्ह्...ऐसे झ...झटके तो, मेरा मरद भी नही...नही लगा पाता...बहुत मज़ा आया...!"
और ये बोलते हुए; उसने एक बार फीर बनधारी के मुह में अपना मुह घूसा दीया|
दोनो एक दूसरे के...मुह को कुछ देर तक चूमते चाटते रहे; फीर दोनो अलग हुए; बनधारी खड़ा होते हुए अपनी लूंगी पहनते हुए मुस्कुरा कर बोला-
बनधारी-"मज़ा आया शीला रानी?"
शीला अभी भी वैसे ही; टांगे फैलायी लेटी हुई मुस्कुराकर बोली-
शीला-"पूछो...मत! ऐसा मज़ा पहले कभी नही आया!"
लूंगी पहनते हुए; बनधारी ने बोला-
बनधारी-"आज रात मेरे; अट्डे पर आ जाना! अपना सुट्टा पीकर चोदूगां तो; अपने मरद का लंड भूल जायेगी"
और ये कहकर; बनधारी और शीला वहां से चुपके से नीकल लीये....
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सुबह-सुबह उठ कर मीना; भैंसो को चारा डाल रही थी| और अपनी बेटी फूलवा को मन ही मन कोस भी रही थी-'उ हरज़ाई के वज़ह से; कल मेरा बेटा अपनी माँ की मुनीया का मज़ा नही ले पाया! कोई बात नही आज अपने प्यारे बेटे को मज़ा दूंगी...! अरे...लेकीन उ जुबेर को भी तो अपनी बुर दीखाने को बोल आयी हूं! क्या करुँ कुछ समझ में नही आ रहा है मेरे तो! कहीं अगर मेरे बेटे को पता चल गया तो; मैं तो कहीं की नही रहूंगी|'
अपने मन में हज़ारो...सवाल; सोंचते हुए, मीना, भैंसो को चारा डालने के बाद; घर के अंदर की तरफ बढ़ी...
सवालों की सोंच से; सीर्फ मीना ही नही घीरी थी| बल्की आँगन में झाड़ू लगाती हुई फूलवा भी सोंच रही थी...
''क्या वो दूसरा हांथ मां की बुर पर...बल्लू का था? और अगर बल्लू का था तो...क्या मां को इस सब के बारे में पता है? नही...नही! अम्मी तो बहुत सीधी है; वो तो सो रही होंगी! नही तो, वो बल्लू को ऐसा थोड़ी करने देती! लेकीन अगर सो रही थी तो, कुछ देर बाद ही; अम्मी ने मेरा हांथ कैसे हटाया अपनी बुर पर से? हे...भगवान! मुझे तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है'...
फूलवा अभी तक अपनी सोंच की गहराईयों से नीकली भी नही थी की...एक आवाज़ ने उसे झींझोड़ा...
"झाड़ू ही मारती रहेगी या फीर खाना-पीना भी कुछ बनायेगी?"
ये आवाज़ उसकी मां मीना की थी...!
फूलवा-"बस हो गया अम्मा...! जा रही हूँ खाना बनाने ही|"
मीना-"ठीक है...! और जरा रात को ठीक से सोया कर! तूझे पता भी है की, नींद में कहां-कहां हाथ फीरा देती है?"
फूलवा समझ जाती है...की माँ कल रात वाली बात कर रही है|
फूलवा-"क्यूँ अम्मा? ऐसी कोन सी जगह मेरी हाथ फीर गयी?"
मीना शरम से लाल हो जाती है, उसने सोचा की अब इस पगली को कैसे बताऊं की? इसने मेरी बुर पर हाथ फीरा दीया था...!
मीना-"अरी...!मेरे कहने का मतलब की, तू सोते बख़त हाथ-पांव बहुत पटकती है...और क्या?"
ये सुनकर, फूलवा थोड़ा मुस्कुराई और फीर बोली-
फूलवा-"अरे...! अम्मा, अब सोते बख़त; मुझे थोड़ी पता की, मेरे हांथ-पांव कहां जा रहे हैं? और अगर फीर भी,, तूझे; मेरे हाथ-पांव पटकने से परेशानी है तो, आज से मैं; बल्लू की तरफ़ सो जाया करूगीं! ठीक है?"
मीना-"नही रे...बीटीया! मुझे कोई परेशानी नही! लेकीन फीर भी अगर तू बल्लू की तरफ़ सोना चाहती है तो, ठीक है|"
फूलवा सोंचते हुए-'हां...!तू तो यही चाहती है। ताकी तू बल्लू से बुर आराम से सहलवा सके! लेकीन मैं भी देखती हूं की, बल्लू तेरी बुर कैसे सहलाता है?'
और ये सोंचते हुए; फूलवा रसोंई घर की तरफ़ चली जाती है| मीना घर के आँगन में बैठी थी की, तभी उसे बाहर से आवाज़ सुनायी पड़ी...
मीना तुरतं उठ कर घर से बाहर, दुवार पर आती ही देखी की, सामने जुबेर खड़ा था| मीना को देखते हुए; जुबेर थोड़ा मुस्कुरा पड़ा! जुबेर को मुस्कुराता देख; मीना भी मुस्कुरा पड़ी और बोली-
मीना-"क्या हुआ? सुबह-सुबह ही आ गया? चल आ जा अंदर|"
जुबेर भी मुस्कुराता हुआ मीना के पीछे-पीछे घर के अंदर जाने लगता है तो, उसकी नज़र; मीना के ठुमक रहे मस्त कुल्हो पर पड़ी! साड़ी के अंदर मस्त भारी-भरकम गोल नीतंब देखकर; उसका लंड बेकाबू होने लगा| यौवन से गदराई मीना का जीस्म ऐसा ही था! जो एक बार देख लेता था, मदहोश हो जाता था|
घर के अंदर; ओसार मे आते ही! जुबेर बेकाबू हो जाता है| और पीछे से ही मीना के कमर में हांथ डालते हुए उसे अपनी बांहों में जकड़ लेता है| इस बर्ताव से मीना चौंक जाती है...और खुद को छुड़ाने का प्रयास करती हुई बोली-
मीना-"अरे...हरामी! बर्दाश्त नही होता तूझसे का? छोड़ मुझे! नही तो फूलवा ने देख लीया तो गज़ब हो जायेगा?"
ये बोलते हुए; मीना, जुबेर की बाहों से छुटने के लीये; थोड़ा कसमसायी लेकीन फीर शांत हो गयी!
जुबेर भी मीना का सच्चा आशिक था| ना जाने कब से राह तक रहा था मीना को अपना बनाने का! जुबेर को पता था, की, मीना से खूबसूरत और आकर्षक औरत पूरे गाँव में कोई नही| जवान, अधेड़, बूढ़े सब के सब मर्द! मीना के नाम का मुठ मारे बीना नही सोते थे| और ऐसे में जब आज़ मीना, जुबेर की बाँहों में थी तो, उसे अपनी कीस्मत पर यक़ीन नही हो रहा था|
जुबेर ने, मीना के सुराही दार गोरे गर्दन पर प्यार से चूमते हुए बोला-
जुबेर-"अरे...मेरे सपनो की रानी! इतनी खूबसूरत औरत को देखकर तो नामर्द भी बर्दाश्त ना करें! तो मेरी औकात क्या?"
अपनी खुबसूरती की तारीफ सुनकर, मीना थोड़ा मुस्कुरायी और फीर जुबेर की बांहों में ही पड़ी! घुम कर जुबेर की तरफ़ मुहं करते हुए बोली-
मीना-"अच्छा...अच्छा! सब पता है...मुझे! ज्यादा मस्का मत लगा! और छोड़ मुझे, घर पर बल्लू और फूलवा दोनो है...समझा कर!"
मीना की सुड़ौल चूंचीया, जुबेर के सीने से चीपकी, जुबेर के अंदर पागलपन भर रही थी! उसके लाल गुलाबी रस से भरे होंठ और फूलों की तरह खीले गाल और चेहरे को देखकर। जुबेर का मन मचल गया| और उसने मीना को और कस कर अपनी बांहो में जकड़ते हुए, अपने होंठ मीना के होंठ से भीड़ा कर, पागलो की तरह चूसने लगा|
मीना भी जुबेर की इस हरकत से मस्त हो गयी! कीतने सालो से वो कीसी मरद की मज़बूत बांहो में नही पड़ी थी| ऐसे में आज़ जब जुबेर ने पहल की, तो उसके अंदर का औरत जाग गयी और उसने अपना शरीर जुबेर की बांहो में ठीला छोड़ते हुए; खुद को जुबेर को सौंप देती है|
जुबेर तो पागल हो गया था जैसे, मीना के होंठ वो खींच-खींच कर चूसता, कभी गालो को तो कभी गर्दनो को! मीना भी मदहोश हो चूकी थी| लेकीन अचानक! ही, जैसे उसे अपने बेटे बल्लू का ख़याल आया! उसने जोर का धक्का देते हुए; जूबेर को पीछे ठकेलते हुए; वहां से खील-खीला कर हंसते हुए आंगन की तरफ भागी! और कुछ दूर जा कर, रुकते हुए पीछे मुड़ कर देखते हुए जुबेर से मस्ती भरे अंदाज़ में बोली-
मीना-"बाकी...शाम को!"
और इतना कहते हुए; मीना मुस्कुराते हुए आँगन की तरफ़ चली जाती है| जुबेर भी अपने होठों पर लगें मीना के होठों के जाम को अपनी जीभ फीराता है, और मुस्कुराते हुए; मीना के घर से बाहर चला जाता है|
सूरज़ नीकल आया था! पर बल्लू छत पर अभी भी सो रहा था| आंगन में पहुंचते हुए मीना! जुबेर के लगे थूक को; अपनी साड़ी के पल्लू से चेहरे को पोंछती हुई छत पर आ जाती है| वो बल्लू के सीरहाने बैठती हुई; बल्लू को बड़े प्यार से नीहारने लगती है! वो इसी तरह बड़ी देर तक बल्लू को नीहारती रही! फीर अपना हांथ बल्लू के सर पर फीराते हुए बोली-
मीना-"उठ...जा लल्ला! कीतना सोयेगा? सूरज़ भी चढ़ आया है...लल्ला, उठ जा!"
मीना के उठाने और आवाज से, बल्लू की नींद खुल जाती है! आँख खुलते ही; सामने अपनी मां का खुबसूरत चेहरा देखकर, बल्लू मुस्कुरा पड़ता है! ये देख मीना बोली-
मीना-"लगता है...मेरे लल्ला को रात भर अच्छे से नींद नही आयी? जो इतनी देर तक सो रहा है!"
मीना की मीठी बाते और उसके खुबसूरत प्यारे चेहरे को देखकर, बल्लू का मन कीया की; अभी उसे चूम ले! मगर अपने जज्बातो को काबू में करते हुए; बल्लू ने अपनी मां की हथेलीयों को; अपनी दोनो हाथ की मुट्ठी में प्यार से पकड़ते हुए बोला-
बल्लू-"हां...अम्म! सच कहती है तू! कल रात मुझे अच्छे से नींद नही आयी!"
बल्लू का इतना प्यार से उसका हांथ पकड़ कर यूँ मासूमीयत से बोलना, मीना का दील धड़क गया! उसे पता था की बल्लू को रात को नींद क्यूँ नही आयी? जीसका दोष; मीना, अपनी बेटी फूलवा को दे रही थी| उसे बल्लू पर इतना प्यार आ रहा था की, उसका मन कीया की...अभी वो अपनी साड़ी उतार कर बल्लू के नीचे लेट जाये! और बोले की, कर ले मेरा लल्ल जो तूझे करने का दील करे!
ये सब सोंचते हुए, मीना खुद को काबू में करते हुए बोली-
मीना-"ह्म्म्म्म! क्यूँ नींद नही आयी? मेरे लल्ला को! कोई ऐसी चीज है, जो मेरे लल्ला को नही मीली|"
बल्लू-"हां...अम्म! बस मीलते-मीलते रह गयी! उसी बात से नींद नही आयी|"
मीना-"ओ...मेरा प्यारा बेटा! कोई बात नही! कल रात नही मीली तो क्या हुआ?देखना आज़ रात मील जायेगी|"
और ये कहते हुए; मीना मुस्कुराते हुए; बल्लू के माथे पर प्यार से चूम लेती है| बल्लू तो हवांओं में उड़ने लगा| मीना के कोमल-नरम होठों का स्पर्ष पाते ही! वो मस्त हो उठा...! और बोला-
बल्लू-"अम्मा तू बहुत खूबसूरत है! तेरे होंठ कीतने प्यारे है! जब तू ईन होंठो से मुस्कुराती है! तो ऐसा लगता है मानो जैसे गरमी के मौसम में डुबता हुआ सूरज और जाड़े के मौसम का उगता हुआ सूरज़ हो| ऐसा अहेसास होता है तेरी मुस्कुराहट से!"
मीना का चेहरा, एक-टक बल्लू की आंखो पर अटक गयी! उसने अपनी तारीफ़ तो बहुत सुनी थी! लेकीन अपने बेटे के मुह से इस अंदाज में तारीफ सुनकर, उसका मन खुशी से झूम उठा! ऐसी खुशी शायद ही मीना ने कभी अहसास की हो...
मीना-"अच्छा...! इतने अच्छे लगते है मेरे होंठ तूझे?"
बल्लू-"पूछ...मत!"
ये सुनकर, मीना शर्मा जाती है! और शरमाते हुए प्यार से; अपनी गुलाबी होंठो से बल्लू के गाल पर एक चुम्बन जड़ते हुए बोली-
मीना-"अच्छा...ठीक है! बहुत हो गयी मेरी तारीफ़! अब उठ भी जा!"
और ये कहकर, जैसे ही मीना उठते हुए जाने लगी! तो देखा ! सामने फूलवा खड़ी थी...! ये देखकर मीना चौंक जाती है!
क्रमश: