गाँव की प्यासी घोड़ीयाँ - (भाग ६)

Lusty mom,,

gaon ki pyasi ghodiya - part 6


गन्ताक से आगे...

फूलवा के मन में अब शक के बादल उमड़ने लगे थे। वो हैरत भरी नीगाहों से अपनी माँ मीना की तरफ़ शांत खड़ी देखे जा रही थी। मीना भी फूलवा को अचानक सामने खड़ी पा कर चौंक सी जाती है। वो बीना कुछ बोले छत से नीचे उतर जाती है।


बल्लू भी अब छत पर से नीचे आ गया था। मगर फूलवा अभी भी छत पर खड़ी अपने नाख़ुनो को दाँतों से कुतरती कीसी सोंच में डुबी थी...


❏❏❏

निशा अपने घर के रसोंई घर में पीढ़े पर बैठी, रोटीयाँ सेंक रही थी। लाल रंग की सूट पहने हुए निशा के मध्यम आकार की गोलाकार पर मोहीत कर देने वाले उरोज़, उसके पसीने से भीग चूके सूट में पूरी मादकता से चीपके हुए थे। गोरी-गोरी वक्षस्थल की हल्की गहरी कटाव संपूर्णतया कामुक लग रही थी।

बालो की चोटीया बनायी हुई निशा, कहने को तो, रोटीया बेल और सेंक रही थी, मगर उसके ज़हन में अभी भी सुधीया काकी की बाते ही नाच रही थी। कामुक और अश्लिल बातो का चींतन करते हुए निशा के कुँवारे बदन में झुरझुरी चढ़ने लगी थी। जलते हुए चुल्हे की आँच और बदन में उमड़ रही जवानी की गर्मी के बीच, निशा पूरी तरह से पसीने से भीग जाती है।


खाना बनाने के उपरातं, निशा अपने घर के आँगन में आकर बैठ जाती है। और सुबह की ताजी हवावों से अपने पसीने से भीग चूके सूट को सुखाने का प्रयास करने लगती है...तभी वहाँ उसकी माँ रमीया आ जाती है।


रमीया बना लीया खाना?

निशा हां...मां!

रमीया चल ठीक है! चल हमें तालाब पर चलना है। कपड़े भी धोने हैं और वंहीं पर नहा-धो भी लेंगे!

अपनी माँ रमीया की बात सुनकर, निशा को हैरत सी हुई, क्यूँकीं रमीया कभी भी तालाब पर नही जाती थी, और निशा को भी जाने से मना करती थी। क्यूँकीं रमीया को पता था की, गाँव के छीछोरे मर्द छुप कर नहा रही औरतों और लड़कीयों को देखा करते है। खैर निशा ने एक ठंढ़ी साँस भरी और हैरत से बोली-


निशा क्या हुआ माँ? तू तो तालाब पर जाने से मना करती थी! तो फीर आज अचानक! क्यूँ?


अपनी बेटी की बात सुनकर, रमीया हल्के से मुस्कुरायी, और उसी खाट पर निशा के बगल में बैठते हुए बोली-


रमीया अब मेरी बातो का क्या...बीटीया? मैं तो तुझे उस सुधीया के साँथ जाने से या रहने से मना कीया था, मगर तूने सूना क्या? नही ना!


अपनी माँ की बात सुनकर, निशा चोरों की तरह अपनी नज़रें नीची कर लेती है। और जवाब में कुछ ना बोल सकी! ये देख रमीया को थोड़ा बुरा लगा, और सोंचने लगी की उसे ऐसा नही बोलना चाहिए था। रमीया ने अपनी बेटी का हांथ अपने हांथो में प्यार से लेते हुए शांती और कोमलता से बोली...


रमीया देखो बीटीया, मुझे पता है की तू मुझसे नफ़रत करती है। अरे करेगी भी क्यूं ना? क्यूँकीं मैने तूझे हमेशा कहीं आने-जाने से मना करती थी। तूझे एक तरह से बांध कर रखती थी। लेकीन सच बताऊं तो, इसका मतलब ये नही था की मैं तूझसे प्यार नही करती थी। मैं तो ये सब बस इसलिए कर रही थी, क्यूँकीं मैं नही चाहती थी की, मेरी बेटी कीसी गलत संगत में पड़ कर कुछ गलत करे। और जब तूझे उस सुधीया के साथ खेतो पर देखी तो, मैं समझ गयी की, अब ये जरुर मेरी बेटी को बहकायेगी और गलत-सलत सीखायेगी। इसलिए मैने सोचा की, अब तूझ पर पहरा लगा कर कुछ फायदा नही! रोक लगाने से अच्छा ये होगा की, मैं मेरी गुड़ीया रानी की सहेली बन जाऊं, जो बाते मेरी बीटीया उस सुधीया से करती थी। वो बाते हम माँ-बीटीया मील बैठकर कर लेंगी।


अपनी माँ की बातें सुनकर, निशा की आँखें भर आयी, उसे वो सब पीछले दीन याद आने लगे, जब-जब उसने अपनी माँ को मन ही मन ना जाने क्या-क्या बोली थी। निशा को आज अपने आप पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था। वो फ़फक-फ़फक कर रोते हुए अपनी माँ रमीया के सीने से लग जाती है। और जोर-जोर से रोते हुए बोली-


निशा मुझे...माफ़ कर दे माँ, मैं सच मे बहुत बुरी हूँ, ना जाने मैं तूझे क्या-क्या बोल गयी! माफ़ कर दे माँ॥

अपनी बेटी का इस तरह रोना देख, रमीया का दील भर आया! और वो प्यार से उसका सर अपने हांथों से सहलाने लगी। रमीया को आज़ एक बात का ज्ञान हुआ था की, जो काम डाट-डपट कर संभव ना हो, वो प्यार के मीठे बोल से जरुर हो जाता है।

❏❏❏

गर्मी की दोपहरी उफ़ान पर थी। बाहर गर्म हवावों की लवर चल रही थी। गर्मी का प्रकोप इतना था की, इंसान की बात तो छोड़ो, कुत्ते-बील्ली भी ठंढ़ी छाँव की तलाश में लगे हुए थे।

अपने कमरे में खाट पर लेटी मीना, अपनी आँखें बंद करके, आज हुए सुबह की घटना को याद करके, मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी। उसकी यादों में इस समय जुबेर ही बसा था। मीना याद करने लगी की, कैसे अज जुबेर ने उसे अपनी आगोश में भर लीया था। और उसके खुबसूरत बदन को प्यार से चूम रहा था। जब उसे याद आती है की, जुबेर ने जब उसके कोमल गुलाबी रसीले होंठो को अपने होंठो में भींच कर उसके होंठो के जाम पी रहा था, तो मीना के होंठो पर अनायास ही उसकी जीभ ने शीरकत कर दी।


आज मीना कुछ अलग महसूस कर रही थी। बरसों से दबी, मीना की कामुकता ने एक बार फीर अंगड़ाई लेने लगी थी। अब उसके बदन में भी सुरसुरी मचने लगी थी। ख़यालों में खोयी मीना के हसीन और मासूम चेहरे पर, मुस्कान ने हल्की चादर ओढ़ रखी थी, की तभी कीसी की छुवन से वो खयालों से बाहर आती है। और अपनी कारी कज़रारी आँखों की पलको को खोलती है तो पायी की, सामने उसका लल्ला बैठा था। जो उसे देखते हुए मुस्कुरा रहा था।

अपने सामने बैठे, अपने बेटे का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख, मीना भी खुश हो जाती है, और उठ कर खाट पर बैठते हुए, प्यार से बल्लू के चेहरे को अपनी दोनो हथेलीयों में भरती हुई बोली...


मीना अरे...वाह! आज तो मेरा लल्ला खुश दीखाई पड़ रहा है। आखीर बात क्या है?


मीना की ये बात सुनकर, बल्लू थोड़ा शर्मा जाता है॥ और फीर बोला-

बल्लू कुछ नही माँ, तेरे चेहरे पर मुस्कान देख कर, मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी! बस और क्या?


मीना अच्छा...तो ये बात है! मेरे चेहरे पर मुस्कान थी, इसीलिए तेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी? इतना प्यार कब से हो गया तूझे मुझसे?


बल्लू बचपन से माँ! मैं तूझसे बहुत प्यार करता हूँ। इतना की तेरे चेहरे पर उदासी बर्दाश्त नही होती मुझसे।


अपने बेटे की कथन से, मीना के अंदर खुशी की वो लहर दौड़ती है की, वो उसे प्यार से बस नीहारे ही जा रही थी। लेकिन फीर तभी मीना थोड़ा नाटक करते हुए बोली-

मीना चल...चल पता है मुझे! वो तो तू मेरा दील रखने के लिए झूट बोल रहा है। नही तो भला एक जवान लड़का, मुझ जैसी बूढ़ी औरत को इतना प्यार क्यूँ करेगा?

ये बोलकर, मीना थोड़ा मुह बना लेती है। मीना को ऐसे देख, बल्लू थोड़ा घबरा जाता है, और झट से अपनी माँ की हथेलीयोँ को अपने हाथों में लेते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला-


बल्लू कैसी बात कर रही है तू माँ? मैं भला तूझसे झूंठ क्यूँ बोलूगाँ? हम जीनसे प्यार करते है, उनसे झूठ नही बोलते! और प्यार की कोई उम्र नही होती। प्यार सीर्फ प्यार होता है। जो मुझे तूझसे है। और अगर तू बूढ़ी होने की बात कर रही है तो, बता दू तूझे की, कल को अगर तू १00 साल की भी हो जायेगी ना, तो भी मैं तूझे इतना ही प्यार करुगां।


मीना की पलके तो मानो जैसे छपकना ही भूल गयी हो। टकटकी लगाये अपनी बेटे की बात सुनकर, मीना का दील गदगद हो जाता है। वो एक बार फीर से अपनी हथेली को बल्लू के चेहरे को थांमते हुए बोली-


मीना अच्छा...बाबा! मान गई की तू मुझसे बहुत प्यार करता है। अब जा...जाके सोजा। बहुत तेज दोपहरी है और गर्मी का तो पूछ मत, मुझे भी थोड़ा सोने दे। क्यूँकीं दूसरी बेला मुझे तो घास काटने जाना है।


ये सुनकर, बल्लू मुस्कुराते हुए खाट पर से उठता हुआ बोला-


बल्लू ठीक है माँ, तू आराम कर! लेकिन एक बात तो बता, की आखिर क्या याद करके तेरे चेहरे पर मुस्कान बीखर पड़ी थी।


बल्लू की बात सुनकर, मीना के चेहरे की हंसी फीकी पड़ जाती है। और झूंठी हसीं लाते हुए बोली-


मीना और भला कीसे याद करुगीं? तेरे अलावा है क्या मेरा कोई?


बल्लू के दील में तो गुब्बारे फूटने लगे थे। वो खुश होते हुए दरवाज़े तक जाता है, और एक नज़र फीर मुड़ कर अपनी माँ की तरफ़ देखता है, जो इस समय खाट पर आँखे बंद करके लेट गई थी। ये देख बल्लू वहां से मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चला जाता है।


इधर फूलवा भी अपने कमरे में लेटी, हाथों में पंखा लिए डोलाते हुए, कीसी सोंच में डूबी हुई थी। उसकी सोंच में उसकी माँ और उसका छोटा भाई बल्लू की हरकतो ने घर बना लीया था। आज सुबह छत पर, जीस तरह बल्लू और उसकी माँ बाते कर रहे थे। उसे देखकर वो हैरान रह गयी थी।


फूलवा अब ये समझ चूकी थी की, दोनो मा-बेटे एक दूसरे को कीसी मर्द और औरत की नज़रीयें से चाहते है। ये बात फूलवा को पचाना आसान न था। ना जाने क्यूँ उसका जी घबरा सा रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे उसका कुछ छीन रहा हो! और वो अकेली महेसुस कर हो! मगर वो समझ नही पा रही थी की, आखिर ऐसा क्या है? क्यूँ इतनी बेचैनी है उसे? इससे पहले तो ऐसा न था।

खुद उलझी फूलवा, हाथ में लिए पंखे को एक तरफ खाट पर रखते हुए करवट लेते हुए लेट जाती है। ओढ़नी ना पहनने की वजह से, उसके भारी-भरकम माँसल स्तन का आधे से ज्यादा गोरा हीस्सा उसके सूट से बाहर झांकने लगे थे। ऐसा कामुक दृश्य प्रदर्शीत हो रहा था की, अगर इस समय कोई भी मर्द अगर फूलवा को इस अवस्था मे देख लेता तो, उसके कामुक और खुबसूरती को देखकर अपने होश खो देता

❏❏❏

घर पर लेटी, शीला के चेहरे पर भी आज खुशी के बादल छाये हुए थे। आज उसकी जीस तरह से चूदाई हुई थी, उसकी बुर अभी तक फड़क रही थी। खाट पर लेटी शीला मंद-मंद मुस्कुराते हुए खाट पर से उठती है, और अगल-बगल ताक-झांक करते हुए पाती है की, उसकी बेटी बेसुद होकर सो रही है। ये देखकर, शीला धिरे से खाट पर से उठती है, और मटके के घड़े के पास जाकर एक लोटे में से पानी नीकालती है और जैसे ही पीने के लिए मुह मे लगाती है। उसे बाहर से कीसी के तेज कदमो की आहट सुनाई पड़ती है। शीला घर के दरवाजे के पास भागते हुए जाती है। और दरवाज़ा खोलकर बाहर झांकते हुए देखी तो पायी!


कुछ पाच से छह लोग अपने सर पर गमछा डाले तेज कदमो के साथ बढ़े जा रहे थे। उनके कदमो की गति देखकर अंदाजा लग रहा था मानो वो काफ़ी जल्दी में है या फीर हड़बड़ी में। तभी शीला की नज़र उन आदमीयों के हाथों पर पड़ी, सबके हाथों में झोला लटका हुआ था। शिला कुछ समझ नही पा रही थी की, आखिर ये लोग है कौन? और इस गाँव में क्या कर रहे है? शीला ने ज्यादा कुछ ध्यान न देते हुए घर के अंदर वापीस से दाखिल हो ही रही थी की...।

अरे काकी...क्या हाल है?

ये आवाज सुनकर...शीला एक बार वापस दरवाजे की तरफ़ मुड़कर देखती है तो पायी की, एक १९ साल का साँवला सा लड़का खड़ा मुस्कुरा रहा था। देखकर ही लग रहा था की, गर्मी से उसकी हालत खराब है माथे पर से टपकते हुए पसीने को अपने गमछे से पोछने लगता है।


शीला अरे मुन्ना तू? इतनी कड़ी दोपहरी में कहां घूम रहा है? पगला गया है क्या? चल आ अंदर...मैं मटके का ठंढ़ा पानी लाती हूं।


ये सुनकर मुन्ना अपने गमछे से एक बार फीर से अपना पसीना पोंछता है और फीर घर के अंदर दाखील हो जाता है। मुन्ना खाट पर आकर बैठ जाता है, तब तक शीला भी मटके का पानी एक ग्लास मे लेकर आती है और मुन्ना की तरफ बढ़ाती हुई वहीं नीचे ज़मीन पर उसके पैरों के पास बैठ जाती है। और बोली-


शीला अरे पगला! इतनी भीषण गर्मी में कहां घूम रहा है? तबीयत खराब हो जायेगी तो?

मुन्ना ग्लास का पानी पीते हुए ग्लास को नीचे रखते हुए बोला-


मुन्ना अब क्या बताऊं तूझे काकी। मैं तो घर पर ही था। लेकिन जुबरेन्द्र काका आ गये घर पर, तो माँ ने मुझे कहा की जा कहीं घूमकर आ जा दो-तीन घंटो के लिए, अब कहां जाता तो तेरे घर ही चला आया।


मुन्ना की बात सुनकर, शीला मन ही मन गुस्से से लाल-पीली हो गयी। और सोचने लगी की, ये हरज़ाई सुधीया इतनी बड़ी रंडी नीकल गयी है की, चुदवाने के लिए बुरचोदी भरी दोपहरी में ही बेटे को घर से बाहर भेज दी कुतीया ने। और मेरा कुकुर मरद भी उस छीनाल की बुर चाटने को दोपहरी में ही पहुंच गया हरामी। ये सोंचते हुए शिला ने कहा-


शिला अरे नही! मुन्ना बेटा। बहुत अच्छा कीया जो तू यहां चला आया। अब तू दूसरी बेला ही घर जायेगा, बता दे रही हूँ।


ये सुनकर मुन्ना खुश होते हुए बोला-


मुन्ना एक तू है काकी, जो मेरा इतना ख़याल रखती है। और एक मेरी माँ है, साली एक नंबर की रंडी है कुतीया। हमेशा मुझ पर रौब झाड़ती रहती है।


मुन्ना की बातो ने, शिला के दील को ठंढक पहुचाया। वो मन ही मन खुब खुश हुई मगर बनते हुए बोली-


शिला अरे बेटा, माँ के बारे में ऐसा नही बोलते! तू शांत हो जा गुस्सा मत कर।


मुन्ना थोड़े गुस्से में...


मुन्ना ऐसी नही तो कैसी बाते करुं काकी! क्या तूझे नही पता की मेरी माँ कीस तरह की औरत है। और जुबेर काका और मेरी माँ के बीच कैसे संबध है? मुझे पता है की, उस कुतीया की बुर खुजला रही थी इसलिए वो मुझे घर से बाहर भेज दी ताकी वो जुबेर काका से अपनी बुर की खुज़ली मीटा सके। कभी-कभी तो मन करता है की, मैं ही चढ़ जाऊँ उहके उपर और उसकी बुर में पूरा का पूरा लंड जड़ तक ढ़ूंस दू और पूरी खुज़ली मीटा दूं उसकी बुर की।


मुन्ना के मुह से ऐसी बाते सुनकर शिला तो हाय तौबा कर बैठी। उसे यकीन नही हो रहा था की, ये वही मुन्ना है जीसे वो जानती है या फीर कोई और? इतना सीधा-साधा मुन्ना के मुह से ऐसी बातों की तो कभी उसने कल्पना भी नही की थी। वो हैरान थी, और नीचे बैठी हैरत से मुन्ना की तरफ़ देखे जा रही थी।

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