लड़ाई प्यार की?

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लड़ाई प्यार की?

लड़ाई प्यार की? (A sensual love story)



काली अंधेरी रात ने धरती पर चादर ओढ़ ली थी। आसमान में टीमटीमाते तारेँ भी काले घने बादल की गोद में छीप गये। हवाँवों ने अपना रुख़ बदला तो, तेज़ आँधीयों में तब्दील हो गई।

फीर बीज़ली भी कहाँ पीछे हटने वाली थी। वो भी कड़कने लगी॥ और बीज़ली के कड़कते ही, बादलों ने वर्षा शुरु की।

आसमान से बारीश की पहली बूंद जैसे ही नीचे धरती पर गीरने को हुई। वों बूंद एक ८ साल के मासूम बच्चे के उपर गीरी॥

बूंद का अहेसास होते ही, वो बच्चा आसमान की तरफ़ देखने लगा। उसकी आँखों से बह रहे आँशूओं को, आसमान से बरसते बादल की मोटी बूंदे भी उसके आँसुओं से मील गये। मानो जैसे आज वो मासूम बच्चा नही, बादल रो रहा हो।


८ साल का मासूम बच्चा, इतनी कड़कती तेज बीज़ली, बादलों की तेज़ गरज़, और आँधीयों के तेज़ झोके से भी ना डरा, वो बस वही खड़ा दूर एक बड़ी हवेली की तरफ़ देखता रहा। उसकी आँखों में बेबसी और लाचारी साफ दीखाई दे रही थी। वो भीगते हुए एक-टक उस हवेली की तरफ मायूसीयत से देखता रहा। और फीर उसके मुह से एक आवाज़ नीकली...


"जा रहा हूँ माँ...!"


और फीर वो ८ साल का बच्चा, अपने कदम बड़ी हवेली के वीपरीत बढ़ा देता है। लेकीन कुछ दूर कदम बढ़ाते ही एक बार उसके कदम फीर रुकें। वो फीर से हल्का सा मुड़ा और एक बार उस हवेली की तरफ देख कर अपने आँशुओ को पोछते हुए...! वापस अपने नन्हे और नंगे कदम आगे बढ़ा कर चलने लगता है।



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हवेली में, अफरा-तफरी मची हुई थी। एक २7 साल की औरत, हवेली के बाहर बरसात में भीगते हुए, पागलो की तरह रोते हुए कभी इधर भागती तो कभी उधर, हवेली के नौकर भी हांथ में टॉर्च लीये, हवेली के बाहर नीकल गये। वो औरत रोते हुए अपनी छातीया पीटते हुए....

"मेरा लाल, छोड़ गया मुझे! ये क्या कर दीया मैने? हे भगवान! चाहे तो मुझे सज़ा दे, पर मेरे लाल के कदम वापस मोड़ दे!"


कहते हुए, वो औरत अचानक से बेहोशी की आगोश में चली जाती है। और धड़ाम से गीली हो चुकी धरती पर गीर जाती है। उसे गीरता देख, चार लड़कीयाँ और दो औरत करीब-करीब भागने की अवस्था में उस बेहोश हो चुकी औरत के पास आती हैं। और उसे पकड़ते हुए उठा कर हवेली के अंदर ले कर चली जाती है।



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"सुख्खे...?"

"जी मालीक!"

"कुछ पता चला, अजय का?"

"नही...मालीक! बहुत ढुँढा, पर ना जाने कहाँ चले गये?"

"ठीक है! और अब ढुँढने की जरुरत भी नही है। चलो...वापस!"


और फीर वो लोग वापस हवेली की तरफ़ नीकल पड़ते है।

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८ साल का मासूम अज़य, आँधी, तूफ़ान से लड़ते हुए...गाँव से काफी दूर आ गया था। उसके नन्हे से शरीर में उर्जा की कमी साफ दीखाई दे रही थी। उसके कदम थकान से लड़खड़ा रहे थे। पेट पर एक हाथ रखे हुए वो बच्चा अपनी भूँख को भी संतावना दे रहा था। साँसे फूल रही थी, और आँखे मूंदने लगी थी।

तभी उसे एक रेलगाड़ी का हॉर्न सुनाई पड़ा। चेहरा मोड़ कर देखा तो, रेलगाड़ी की तेज लाईट उसके आँखों पर पड़ी। जीससे उसकी आँखे चौंधीयां जाती है। वो अपने एक हाथ से रेलगाड़ी की लाईट को रोकने का प्रयास करता है। और जैसे ही रेलगाड़ी, अजय को क्रॉस करता है, कुछ दूर जाकर रुक जाती है।


उस बच्चे ने देखा की, सीग्नल रेड है। बच्चे ने बीना कुछ सोचे-समझे, अपने कदम मालगाड़ी के डीब्बो की तरफ़ बढ़ा दीया। वहां पहुँच कर वो, गाड़ी के डीब्बे पर चढ़ने लगा। और चढ़ते हुए, पैर में लगे मीट्टी की वज़ह से उसका पैर फीसला और, सीधा डीब्बे के अंदर आधे लदे कोयले पर गीर जाता है।


और फीर तभी गाड़ी भी चल पड़ती है। वो बच्चा उठ कर बैठते हुए, डीब्बे में हुए होल से, अपने गाँव को देखता रहता है। उसकी आँखों में मायुसीयत के आंशु छलकने लगे थे।

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सुबह की सुरज पहली कीरण, उस बच्चे के चेहरे पर पड़ते ही। उसकी नींद खुल जाती है। वो बच्चा अंगड़ाई लेते हुए, उठ कर कोयले के ढेर पर बैठ जाता है। उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग दर्द कर रहा था। उसे हल्का चक्कर भी आ रहा था। शायद भूख की वज़ह से! तभी गाड़ी हॉर्न बज़ाती हुई रुक जाती है।


गाड़ी रुकते ही, वो बच्चा एक बार फीर डीब्बे पर चढ़ता हुआ गाड़ी से नीचे उतर जाता है। गाड़ी कीसी स्टेशन पर रुकी थी। तो पटरी क्रॉस करते हुए प्लेटफॉर्म पर आ जाता है, और ब्रीज़ पर चढ़ने लगता है।


वो स्टेशन के बाहर जाने वाले ब्रीज पर चढ़ा था। और जैसे ही वो, ब्रीज से नीचे उतरने के लीए हुआ। कुछ ३ से ४ भीखारी लड़के उसे रोक लेते है। और उसमे से एक १0 साल का भीखारी लड़का बोला-


"क्या बे? कहाँ से आया है। देखने में तो तू हमलोग के खानदान का लगता है। पर ये एरीया हमारा है, समझा! यहाँ भीख नही मांगना। चल अब नीकल, भीख मागते हुए दीखना मत।"


अजय के शरीर में उर्जा की कमी थी। शायद बुख़ार भी था हल्का, और उपर से भूंख। वो उन लड़को से कुछ नही बोलता और ब्रीज से उतरते हुए, स्टेशन के बाहर आ जाता है।


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और इधर हवेली में, उसी सुबह उस २७ वर्षीय औरत को जैसे ही होश आता है, वो चील्लाते हुए उठ कर बेड पर बैठ जाती है।

"अजजजजजय...."

उस औरत के होश में आते ही, हवेली के सारे सदस्य उसे संभालने लगते है। मगर वो औरत छटपटाते हुए बेड पर से उठ कर...


"म....मेरा अज़य कहां है? म...म...मुझे उसके पास ले चलो। कहां है वो? सवीता? कहां है मेरा लाल?"


वो औरत इस तरह बर्ताव कर रही थी, मानो वो पागल हो गयी हो। उसकी हालत देख, पास में खड़ी वो औरत सवीता, और तीनो लड़कीयाँ रोने लगती है। उन लोग को रोता देख, वो औरत बोली-


"क...क्या हुआ? त...तुम लोग रो क्यूँ रही हो? जाओ लेकर आओ मेरे बेटे को?"


ये सुनकर, पास में खड़ी सवीता, उसके बगल में बैठते हुए रोने लगती है, और बोली-


सवीता: "आनंदी दीदी...वो, अज...अजय, घर छोड़ कर चला गया।"


ये सुनना था की, आनंदी के चेहरे के भाव ही पता नही चले की। कीस स्थीती में है वो। आनंदी लाचारी भरे लहजे में....


आनंदी: "चला गया! कहाँ चला गया? अपनी माँ को छोड़ कर! अभी तो म...मुझे उससे माफी मांगनी है। (और फीर रोते हुए जोर सी चील्ला कर)...ऐसे कैसे छोड़ कर चला गया। हे भगवान! अब क्या करूं मैं?"



आनंदी की हालत एकदम ख़राब थी। और उसका इस तरह का बर्ताव, कहीं उसके दीमाग पर असर ना डाल दे। सब लोग आनंदी को पकड़ते हुए संभालने लगते है। तभी वहां डॉक्टर भी आ जाते है। और आनंदी को नींद की इंजेक्शन देते है। आंनदी धीरे-धीरे नींद की आगोश में चली जाती है।



**परीचय**

१ : आलोक चौधरी ()

हवेली के पहले हकदार। मगर दो साल पहले इनकी दुर्घटना वश समापन हो गया।


२ : आनंदी चौधरी (२७ वर्ष)


आलोक चौधरी की पत्नी। बी॰एड॰ की डीग्री हांसील करने वाली, बलखाती हुश्न की रानी। आलोक के कॉलेज़ में कॉलेज़ में पढ़ रही थी। और पहली बार जब आलोक ने उसे देखा तो दील हार बैठा। फीर क्या था, १२वी उत्तीर्ण करते ही, आलोक के पीता जी आनंदी के घर रीश्ता लेकर पहुंच गये। आलोक काफी धनी खानदान का था। इसलीए आनंदी के पीता मना नही कर सके। आनंदी भी उस समय शादी नही करना चाहती थी। मगर कीस्मत शादी धूम-धाम से हुई। शादी के बाद आनंदी ने बी॰एड की उपाधी हांसील की।




३: रागीनी : (१२ वर्ष)

आनंदी की बड़ी बहन की बेटी। बहन के नीधन के बाद से रागीनी आनंदी के सांथ रहने लगी थी। खुबसूरती तो जैसे खील रही थी...जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही थी।


४: नंदीनी (उम्र १0 वर्ष)

फूल सी नाजुक कोमल और गुलाबी सुरत की ये लड़की। आंनदी की बेटी थी। जो माँ की तरह ही रुपवती थी।


५: अजय (उम्र ८ वर्ष)


आनंदी का बेटा। बड़ा ही नटखट और हसमुख लड़का ।




----------संतोष चौधरी (उम्र २७ वर्ष)

आलोक चौधरी के छोटे भाई। प्रमोद चौधरी वीद्धापीठ से लेकर डीग्री कॉलेज़ तक की सारी देखरेख। और ५00 एकड़ की उपजाउ ज़मीन, १00 एकड़ के फलों का बाग आदि सारे इनके ही अंतर्गत देखरेख मे है। हालाकी, इन सब ज़ायदाद की मालकीन आंनदी थी। ज्यादा पढ़ी-लीखी होने के कारण, ससुर ने जीम्मेदारी इनके नाम कर दी थी।


२: सवीता (उम्र २७ वर्ष)


संतोष चौधरी की पत्नी। खुबसूरती साज-श्र्रंगार में ये महारानी भी कीसी से कम नही है।


३: रोहिनी और रोहीत (उम्र ९ वर्ष)

संतोष चौधरी के जुड़वा बच्चे है।



कहानी के अन्य पात्र आप कहानी के अनुसार ही अवगत होंगे-

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ब्रीज पर से नीचे उतरते ही। अज़य ने देखा की आगे तो बहुत बड़ा मार्केट है। वो कुछ देर खड़ा होकर कुछ सोंचने लगा। और फीर अपने गले तक हांथ ले जाते हुए कुछ खींचते हुए तोड़ देता है। वो सोने की एक काफ़ी मोटी चेन थी।

वो उसे लेकर मार्केट में घुस गया। और सोनार की दुकान ढुंढने लगा॥ कुछ दूर जाते ही उसे एक सोनार की दुकान दीखी...जीसमें एक ४८ साल का अधेड़ ब्यक्ती चश्मा लगाये बैठा था।


अजय उस दुकान में घुस गया।

"अरे...ये भीखारी कैसे दुकान में घुस गया। नीकल यहाँ से जल्दी!"


उस सोनार की बात सुनकर, अजय ने पहले अपनी हालत देखी...उसके कपड़े कोयले की वज़ह से काले और गंदे हो गये थे।


"अरे छोरे...सुना नही!"


"अरे वो भैंस के गोबर! भीखारी नही हूँ ये देख!"


और ये कहते हुए अज़य ने सोने की मोटी चेन पेश की...वो सोनार तो अपना चश्मा उतारकर आँखे नचाते हुए देखता रह गया।


"अरे तू तो बुरा मान गया छोरे, मुझे पता था तू भीखारी थोड़ी है। कपड़े काले और गंदे है तो क्या हुआ? आ जा बैठ...और ये चेन जरा दीखा तो!"


अजय बैठते हुए वो चेन सोनार की तरफ उछाल देता है। वो सोनार चेन को रगड़ते हुए चेक करते हुए मन मे...


'उम्म्म्म माल तो खरा है और वज़न भी। इस छोरे को २0 - ५0 हज़ार देकर रवाने करता हूँ।'


और फीर...


"इसका तो तूझे २५ हज़ार मीलेगा बस।"


अजय: "दे वापीस! ला इधर, उल्लू समझा है क्या? सोना है कोई खीलौना नही। ३ साल पहले मेरे बाप ने ३ लाख में बनवाई थी। समझा। दे वापीस, बहुत दुकाने है आगे।"


सोनार की आँखे चौंधीया गयी,,और मन में-


' बाप रे...ये तो बड़ा ही तेज तर्रार लड़का है। इसे ठगना मुश्किल है।'


"अ...अरे बेटा, मै तो मज़ाक कर रहा था। ये देख रहा था की, तूझे सोने की कीमत पता है की नही?"



अज़य: "खानदानी हूँ कोई नरेगावादी नही। अब बोल कीतना देगा?"


वो सोनार एक बार फीर से उस चेन को तराज़ू में तौलते हुए-


"इसका...४ लाख दे सकता हूँ।


अजय: "ह्म्म्म अब आया रस्ते पे। नही तो तू मुझे बच्चा समझ कर रस्ते का माल समझ कर बस्ते में डाल लेता। चल ठीक है, पर मुझे अभी ये पूरे पैसे नही चाहिए, ज़रुरत के हींसाब से ही चाहिए...।"


सोनार मन में...


'देखो तो छोकरे को! ८-९ साल का जान पड़ता है। और समझदारी ब्यापारीयों वाली।'


"अरे...अरे ठीक है बेटा! बहुत अच्छी बात कही है। इतनी बड़ी रक़म तुम्हारे पास सुरक्षीत नही रहती। मेरे पास सेफ रहेगा। जब जरुरत पड़े आ जाना और ले जाना। लालामनी की दुकान भागी थोड़ी जा रही है।"



अज़य: "ह्म्म्म! सबसे पहले तो मुझे कीराये पर कमरा चाहिए और खाना बना हुआ! तो कहो, कहा मीलेगा?"



लालमनी: "कहीं और जाने की जरुरत क्या है सरकार? मेरा ही घर है। वहाँ रह लेना, रही बात खाने की तो मेरी धर्मपत्नी कमलावती बहुत ही लज़ीज खाना बनाती है। देखो तुम बच्चे हो इस लिए २ हज़ार कीराया और १ हजार राशन-पानी का मीलाकर ३ हज़ार रुपये महीना लगेगा। बोलो चलेगा।"


अज़य मुस्कुराकर...


अज़य: "दौड़ेगा।"


लालमनी: "ठीक है! तो चलो मेरे घर।"


अज़य: "वो सब तो ठीक है गोबर! ये बता की यहाँ कोई प्राईमरी स्कूल है?"


लालमनी: "अरे घर के एकदम नज़दीक ही है। कहो तो दाखीला करा दूँ, शीक्षा फ्री है वहा पर आठवी तक।"


अजय: "इसमे पूछना क्या है? घर छोड़ कर इतनी दूर पढ़ने ही तो आया हूँ गोबर। मुझे अभी ५ हज़ार रुपये चाहिए, अपने लीए कपड़े और स्कूल बैग लेना है।"


लालमनी: "अभी चलो सरकार!"


फीर लालमनी और अज़य कुछ देर के बाद मार्केट में घुमते हुए, ज़रुरत के सामन खरीदते हैं और फीर घर की तरफ नीकल पड़ते है...

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आनंदी बेड पर कीसी मुर्ती की तरह बैठी थी। ना कुछ कह रही थी और ना ही कुछ सुन रही थी। बस आँखों से नदीयाँ बह रही थी। तभी वहाँ पर संतोष चौधरी आ जाता है। और आनंदी के बगल में बैठते हुए, उसके कंधे पर हांथ रखते हुए बोला-


संतोष: "चींता मत करो भाभी, मैने गाँव और शहरों के हर पुलीस स्टेशन में खबर कर दी है। वो जल्द ही हमारे अजय को ढुंढ लेंगें। पर भाभी अगर तुम इस तरह से बीना कुछ खाये-पीये रहोगी तो कैसे चलेगा? तुम ने नही खाया तो घर में कीसी ने नही खाया है। रोने या खाना छोंड़ देने से तो हमे हमारा अजय तो नही मील जायेगा ना।"


ये बात सुनकर, आनंदी की आँखें एक बार फीर नम हो जाती है...तभी वहां रोहित आ जाता है। उसके हांथो में खाने की थाली थी। और वो आनंदी के सामने ही पास में आकर बोला-


रोहित: "बड़ी माँ...कुछ खा लो ना! आप ने कुछ नही खाया है। क्या मैं आपका बेटा नही हूँ?"


आनंदी, रोहित के मासुम चेहरे को झट से पकड़ते हुए रो कर अपने सीने मे छुपा लेती है। रोहित भी वैसे ही आंनदी से लीपटा रहा। मानो आनंदी अपने बेटे अजय को पा गयी है। कुछ ही क्षणों में वहां खड़े सब की आँखे नम हो जाती है। फीर रोहित अपनी बड़ी माँ को खाना खीलाने लगता है, जीसे आनंदी प्यार से खाने लगती है। सब की आँखे नम हो पड़ी थी। मगर हवेली की एक सदस्य वहां पर नही थी, और वो थी आनंदी की बेटी नंदीनी।



ये देखकर, आनंदी ने कहा-


आनंदी: "न...नंदीनी कहाँ है?"


सवीता: "वो...तो अपने कमरे में है।"


आनंदी: "ठीक है, तुम लोग भी खाना खा लो, मैं नंदीनी को खाना देकर आती हूँ।"


ये सुनकर पास में, खड़ी रागिनी बोल पड़ी-


रागिनी: "उसने खाना खा लीया है मौसी। कल रात का भी, आज सुबह का भी और अभी दोपहर का खा कर गई है, और आराम कर रही है।"


ये सुनकर आनंदी को मानो झटका सा लगा, उसे यकीन नही हो रहा था। वो बस चुपचाप उठी और नंदीनी के कमरे की तरफ बढ़ चली।


नंदीनी अपने कमरे में बैठी, अपने भाई अज़य की तस्वीर देख रही थी। तभी वहाँ आनंदी आ जाती है। आनंदी, जब देखती है की नंदीनी अपने छोटे भाई की तस्वीर देखकर उस पर हांथ फेर रही थी और मुस्कुरा रही होती है तो, वो नंदीनी के पास बगल में बैठते हुए बोली-



आनंदी: "याद आ रही है भाई की?"


नंदीनी को पता चल गया था की, माँ कमरे में आ गई है...

नंदीनी फोटो को साईड में रखते हुए...


नंदीनी: "हाँ...थोड़ा-थोड़ा! कुछ दीन तक याद आयेगा फीर वो भी नही। जो छोड़ गया उसे याद करके क्या फ़ायदा? वैसे एक बात तो है की, वो एक नंबर का मूर्ख लड़का है। भला इस उम्र में कोई भागता है क्या? अब बेचारा भाग तो गया, जोश में। मगर मुझे पता है, की अब उसके होश ठीकाने आये होंगे। जब भूंख से छटपटा रहा होगा, खाने के लिए इधर-उधर हाथ जोड़कर लोगो से भीख मांग रहा होगा। तब समझ में आ रहा होगा की, क्यूँ भाग गया?"



आनंदी अपनी बेटी की बात नही सुन सकी। और अपने मुह पर पल्लू रखते हुए रो-कर अपने कमरे में भाग जाती है। और वहीं नंदीनी एक बार फीर मुस्कुराते हुए अपने भाई का तस्वीर उठा लेती है, और बेड पर लेट जाती है।

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इधर अजय टेबल पर बैठा, दबा कर खाना खा रहा था। जीसे लालमनी की पत्नी देखकर धीरे से लालमनी को बोलती है...


कमलावती: "देखो तो ज़रा! कैसे खा रहा है? मानो बरसो का भूंखा हो।"


ये सुनकर लालमनी अपनी एक उगंली मुह पर रखते हुए चुप रहने का इशारा करता है। थोड़ी ही देर में अज़य खाना खा कर उठ जाता है। और अपना पेट सहलाते हुए एक ढकार लेता है और फीर...


अजय: "आह....!सच कहा था गोबर तूने! सच में तेरी पत्नी बहुत ही अच्छे खाने बनाती है। खा-कर मज़ा आ गया। अब तो मैं चला सोने, कल याद से स्कूल ले चलीयो।"


लालमनी: "जी...सरकार!"


उसके बाद अजय अपने कमरे में घुस जाता है।

अज़य अपने बीस्तर पर लेटा था। उसकी आँखों में नींद नाम की चीज़ नही थी। उसे अपनी माँ की याद आने लगी थी। उसे याद आता है की...कैसे वो बारीश में छोटे-छोटे उछलते हुए मेंढ़को के पीछे भागता तो, उसकी माँ हंसते हुए अपनी गोद में उठा लेती और उसे चुमने लगती। जैसे ही उसे अपनी माँ के चुमने की याद आती है, वो अपने गालो पर एक हाँथ रख लेता है। और उस चुबंन का अहेसास करने लगता है। आँखों से दो कतरे छलक चुके थे...मगर अजय ने एक बार फीर उन्हे पोंछ दीया....और मुस्कुराते हुए अपनी आँखे बंद कर लेता है। और नींद की आगोश में समा जाता है।

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